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[ अष्टम विभागः ]
इयं रत्नप्रभा भूमिस्त्रेधा स्यादिति वर्णिता । खरभागः पङ्कमागश्च भागश्चान्बहुलादिकः ॥ १. प्रथमः षोडशाभ्यस्तसहस्रबहुलः स्मृतः । द्वितीयश्चतुरशीतिघ्न सहस्रबहुलो भवेत् ॥ २
। १६००० । ८४००० ।
सहल गुणिताशीति बहुलोऽब्बहुलो भवेत् । पूर्वयोर्भवनावासास्तृतीये नरकाः स्मृताः ।। ३
। ८०००० ।
अधश्चोर्ध्वं सहस्रं स्युस्त्यक्त्वास्यां प्रतरा भुवि । नरकावासकेष्वेषु प्रथमा नरकाः स्मृताः ॥ ४ शर्क रावालुका पकप्रभा धूमप्रभेति च । तमः प्रभा च बळी भूः सप्तमी च महातमः ॥ ५ धर्मा वंश च शैला च अञ्जनारिष्टसंज्ञका । सववी माधवी चेति गोत्रनामानि सप्त च ॥ ६ द्वात्रिंशदष्टाविंशतिश्चतुरग्रा च विंशतिः । विंशतिः षोडशष्टौ च सहस्राणि क्रमाद् घनाः ॥ ७ तिर्यग्लोकप्रविस्तारसंमितान्यन्तराणि च । सप्तानामपि भूमीनामाहुलॉकतलस्य च ॥ ८ घनोदधिधनानिलस्तवातस्त्रयोऽनिलाः । भूतीनां च तले लोकबहिर्भागे भवन्त्यमी ॥ ९ घनोदधिश्व गोमूत्रवर्णः स्याद् घनवातकः । मुद्ावर्गनिनो नानावर्णश्च तनुवाकः ॥ १० भूलोकतलवायूनां द्विहतायुतयोजनम् । बाहल्यं च पृथग्भूलाद्यावद्वज्जुप्रमाणकम् ।। ११
। २०००० ।
यह रत्नप्रभा भूमि खरभाग, पंकभाग और अब्बहुल भागके भेदसे तीन प्रकारकी कही गई है ।। १ ।। इनमें खरभाग नामका प्रथम भाग सोलह हजार (१६००० ) योजन, द्वितीय भाग चौरासी हजार ( ८४०००) योजन और तीसरा अब्बहुल भाग अस्सी हजार ( ८०००० ) योजन प्रमाण मोटा है। उनमें से पूर्व के दो भागों (खरभाग और पंकभाग) में भवनवासी देवोंके आवास हैं तथा तीसरे अब्बहुल भागमें नरक माने गये हैं ।। २-३ || इस पृथिवीमें नीचे और ऊपर एक एक हजार (१०००) योजन छोड़कर नारक पटल स्थित हैं । इन नरकावासोंमें प्रथम नरकके बिल माने गये हैं ।। ४ ।। उस रत्नप्रभा पृथिवी के नीचे क्रमसे शर्कराप्रभा, वालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, छठी तमप्रभा और सातवीं महातमप्रभा पृथिवी स्थित है ॥ ५ ॥ इन पृथिवियोंके क्रमसे घर्मा, वंशा, शैला, अंजना, अरिष्टा, मघवी और माघवी; ये सात गोत्रनाम हैं ।। ६ ।। शर्कराप्रभाको आदि लेकर इन पृथिवियोंकी मुटाई क्रमसे बत्तीस हजार (३२०००) अट्ठाईस हजार ( २८०००), चौबीस हजार ( २४०००), बीस हजार (२००००), सोलह हजार ( १६००० ) और आठ हजार ( ८००० ) योजन प्रमाण है || ७ | इन सातों पृथिवियों तथा लोकतलके मध्य में तिर्यग्लोक के विस्तारप्रमाण अर्थात् एक एक राजुका अन्तर है ।। ८ ।। इन पृथिवियों के तलभाग में तथा लोककें वाह्य भाग में क्रमसे घनोदधि, घनवात और तनुवात येतीन वाजवलय स्थित हैं ।। ९ ।। इनमें घनोदधिका वर्ग गोमूत्र जैसा, घनवातका मूंगके समान और तनुवातका वर्ण अनेक प्रकारका है ।। १० ।। उपर्युक्त पृथिवियों के तलभाग में तथा लोक भी तलभाग में स्थित इन वातवलयोमेंसे प्रत्येकका बाहुल्य पृथक् पृथक् दुगुणे दस अर्थात् बीस हजार (२००००) योजन प्रमाण है । यह उनका बाहुल्यप्रमाण लोकके उभय छो. १९
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