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सप्तमो विभागः
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जतुश्चन्द्रा च समिता बाह्यमध्यान्तराश्रिताः । संज्ञाः परिषदामेता' याथासंख्येन भाषिताः ॥४६ सप्तैव च स्युरानीकाः सप्तकक्षाः पृथक् पृथक् । स्वसामानिकतुल्यः स्यात्प्रथमो द्विगुण आन्तिमातु ॥ असुरस्य लुलापाश्वरथदन्तिपदातिक- । गन्धर्वनर्तनानीकाः सप्तेत्येते भवन्ति च ॥ ४८ ॥ एषां महत्तराः षट् च प्रोक्ता एका महत्तरी । शेषेषु प्रथमानीकाः क्रमान्नौतार्क्ष्यवारणाः ॥ ४९ मकरः खड्गी च करभो मृगारिशिबिकाश्वकाः । शेषानीकाश्च पूर्वोक्तवद्भवन्तीति निश्चिता ॥ पदमात्रगुणसंवर्गगुणितादिर्मुखोनकः । रूपोनकगुणाप्तश्च गुणसंकलितं भवेत् ॥ ५१
चमरस्यैकानीकाः
८१२८००० | समस्तानीकाः ५६८९६००० । ७६२०००० । समस्तानीकाः ५३३४०००० ।
वैरोचनस्यैकानीकाः
भूतानन्दस्य एकानीकाः ७११२००० । समस्तानीकाः ४९७८४०००। ६३५०००० । समस्तानीकाः ४४४५०००० ।
शेषस्य एकानीकाः
२८०००, ८०००, ६००० ), तथा इनसे भी दो हजार अधिक (३२०००, ३००००, १००००, ८०००) वे देव बाह्य परिषद् के आश्रित होते हैं ।। ४४-४५ ।।
उन तीन परिषदों में से बाह्य, मध्यम और अभ्यन्तर परिषदकी यथाक्रमसे जतु, चन्द्रा और समिता ये संज्ञायें कही गई हैं ।। ४६॥
अनीक देव सात ही होते हैं । उनमें अलग अलग सात कक्षायें होती हैं । उनमें से प्रथम कक्षा में संख्या की अपेक्षा अपने सामानिक देवोंके बराबर देव रहते हैं, आगे वे अन्तिम कक्षा तक उत्तरोत्तर दूने दूने होते गये हैं ।। ४७ ।। असुर जातिके देवों में महिष, अश्व, रथ, हाथी, पादचारी, गन्धर्व और नर्तक ये सात अनीक देव होते हैं । इनमें छह महत्तर और एक महत्तरी कही गई है । शेष नौ भवनवासी देवों में क्रमसे नाव, गरुड पक्षी, हाथी, मगर, खड्गी, ऊंट, सिंह, शिविक ( गेंडा) और अश्व ये प्रथम अनीक देव तथा शेष (द्वितीय आदि ) अनीक देव पूर्वोक्त अनीकोंके ही समान होते हैं, यह निश्चित समझना चाहिये ।। ४८-५० ।।
गच्छ प्रमाणं गुणकारोंको परस्पर गुणित करके प्राप्त राशिसे आदि (मुख) को गुणित करनेपर जो संख्या प्राप्त हो उसमेंसे मुखको कम करके शेष में एक कम गुणकारका भाग देनेपर गुणसंकलनका प्रमाण होता है ।। ५१ ।।
उदाहरण--- प्रकृत में गच्छका प्रमाण ७, गुणकारका प्रमाण २, और मुखका प्रमाण ६४००० है । अत एव इस गणितसूत्र के अनुसार ( २x२x२x२x२×२×२ ×६४०००६४००० ÷ (२ - १ ) = ८१२८००० ; इतना चमरेन्द्रकी सातों कक्षाओंके महिष आदि ७ अनीकोंमेंसे एक एकका प्रमाण होता है । इसे ७ से गुणा कर देनेपर उसकी सातों अनीकोंका समस्त प्रमाण इतना होता है- ८१२८०००७=५६८९६००० । वैरोचनकी एक अनीक ७६२०००० समस्त अनीक ५३३४०००० | भूतानन्द की एक अनीक ७११२०००, समस्त अनीक ४९७८४०००, शेष इन्द्रोंकी एक अनीक ६३५००००, समस्त अनीक ४४४५०००० ।
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परिषधा । २५ अन्तिमात् । ३ पूर्वोचता
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