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________________ १३८] लोकविभागः [७.३९चसारि लोयवाला सारिच्छा हॉति ततवालीणं । तेणुरक्खाम समाणा सरीररक्खा पुरा सम्वे ॥ बाहिरमन्झउभंतरतंडयसरिसा हवंति तिप्परिसा । सेणोवमा अणीया पदण्णया' पुरजणसरिच्छा ।। परिवारसमाणाते अभियोगसुरा हवन्ति कि बिभसया । पाणोवमाणधारी २ देवाण (णदंगणा एवं ॥४ सामानिकसहस्राणि चतुःषष्टिर्भवन्ति हि । चमरस्योत्तरस्यापि तेषां षष्टिरुदाहता ॥३९ ।च ६४००० । वै ६००००। भूतानन्दस्य पञ्चाशत्सहस्राणि पुनश्च षट् । पञ्चाशदेब शेषाणां प्रत्येकमिति वर्ण्यते ॥४० ।भू ५६००० । शे ५००००। त्रास्त्रिशाः सुरास्तेषां व्यधिका त्रिंशदेकशः । चत्वारो लोकपालाश्च प्रत्येकं ते च दिग्गताः ॥४१ षट्पञ्चाशत्सहस्राणि चमरे नियुतद्वयम् । चत्वारिंशत्सहस्राणि नियुते द्वे परस्य च ॥४२ ।च २५६००० । वै २४००००। चतुर्विशतिसहस्राणि भूतानन्दस्य लक्षक- । द्वितयं चात्मरक्षाश्च शेषाणां नियुतद्वयम् ॥४३ ।भू २२४००० । शे २०००००। चमरस्य सहस्रं स्यादष्टाविंशतिताडितम् । षड्विंशत्येतरस्यापि भूतानन्दस्य षड्गुणम् ॥४४ चतुर्गुण तु शेषाणां परिषद्यान्तराश्रिता। द्वाभ्यां द्वाभ्यां सहस्राभ्यामधिका मध्यमान्तिमा ॥४५ मैच २८००० । वै २६००० । भू ६००० । शे ४००० । म च ३००००। बै २८०००। भू८००० । शे ६००० । बा च ३२००० ।दै ३०००० । भू १०००० । शे ८०००। लोकपील कोतवालोंके सदृश, सब तनुरक्ष देव अंगरक्षकोंके समान; तीन पारिषद बाह्य, मध्य और अभ्यन्तर समितिके सदस्योंके समान; अनीक देव सेनाके सदृश, प्रकीर्णक पुरवासी (पंजा) जनोंके सदृश, आभियोग्य देव परिचारक (दास) के सदृश, और किल्विषिक देव चाण्डालके सदृश होते हैं। इस प्रकार उपर्युक्त देवपरिवारोंके लिये ये लौकिक दृष्टान्त हैं ।।३-८।। सामानिक देव चमरेन्द्र के चौंसठ हजार (६४०००) तथा उत्तर इन्द्र (वैरोचन) के साठ हजार (६००००) कहे गये हैं ।। ३९॥ ये देव भूतानन्दके पचास गौर छह अर्थात् छप्पन हजार (५६०००) तथा शेष सत्तरह इन्द्रोंमें प्रत्येकके पचास हजार (५२०००)ही कहे जाते हैं ।।४।। उपर्युक्त बीस इन्द्रोंमेंसे प्रत्येकके त्रास्त्रिश देव तेतीस तथा लोवपाल चार होते हैं और वे एक एके दिशामें स्थित होते हैं ॥४१॥ आत्मरक्ष देव चमरेन्द्रके दो लाख छप्पन हजार ( २५६०००), वैरोचनके दो लाख चालीस हजार (२४००००),भूतानन्दके दो लाख चौबीस हजार ( २२४०००) तथा शेष सत्तरह इन्द्रोंके दो दो लाख (२०००००) होते हैं ।।१२-४३॥ पारिषदोंमें अभ्यन्तर परिषद्के आश्रित देव चमरेन्द्रके अट्ठाईस हजार (२८०००), वैरोचनके छब्बीस हजार (२६०००), भूतानन्दके छह हजार (६०००), तथा शेष सत्तर के चार चार हजार (४०००) होते हैं। मध्यम परिषद्के आश्रित वे देव इनसे क्रमश: दो हजार अधिक (३००००, १ आ पं परिणया । २ ब 'दारी । ३ मा 4 चरम । ४ प द्वितीयं । ५ प परिघ्या। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001872
Book TitleLokvibhag
Original Sutra AuthorSinhsuri
AuthorBalchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2001
Total Pages312
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Geography
File Size22 MB
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