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-७.३८] सप्तमो विभागः
[१३७ वश पर्वोदिता येषामिन्द्रा ये स्युयोर्द्वयोः । दिशि ते दक्षिणस्यां च शेषास्तिष्ठन्ति चोतरे ॥३१ चमरस्य चतुस्त्रिश[त्रिश]द्वैरोचनस्य तु । नियुतानामिति ज्ञेयं भवनानि प्रमाणतः ॥ ३२ . भूतानन्दस्य लक्षाणां चत्वारिंशच्चतुर्युता । भवनानि धरणस्यैव चत्वारिंशद्भवन्ति च ॥३३ त्रिंशदष्टौ च वेणोः स्युश्चतुत्रिंशतु धारिणः । चत्वरिशच्च पूर्णस्य वशिष्ठे षट्कृति' भजेत् ॥३४ जलप्रभश्च घोषश्च हरिषेणोऽमिताह्वयः । तुल्या अग्निशिखाश्चैते पूर्णस्येव प्रसंख्यया ॥३५
।४००००००। जलकान्तो महाघोषो हरिकान्तोऽमितवाहनः । वशिष्ठेन समा एते पञ्चमश्चाग्निवाहनः ॥३६
।३६०००००।वलम्बनस्य पञ्चाशत् षट्चत्वारिंशदेव च । प्रभञ्जनस्य वेद्यानि नियुतानीह संख्यया ॥३७
।५००००००। ४६०००००। विशतिर्भवनेन्द्राणां उपेन्द्रा अपि विंशतिः । यौवराज्येन तेनैव यान्त्यन्तं जीवितस्य ते ॥३८
अत्रोपयोगिन्यस्त्रिलोकप्रज्ञप्तिगाथाः [३, ६३-६८] - एक्केकेसि इंदे परिवारसुरा हवंति दसभेया। पडिइंदा तेत्तीसं तिदसा सामाणिया दिसाइंदा ॥३ तणरक्खा तिप्परिसा सत्ताणीया पइण्णगभियोगा। किब्भिसया इदि कमसो पग्णिदा इंदपरिवारा॥ इंदा रायसरिच्छा जुवरायसमा हवंति पडिइंदा । पुत्तणिहा तेत्तीसं तिदसा सामाणिया कलत्तं वा॥५
भवनवासियोमें ये दो दो इन्द्र हैं। इन दो दो इन्द्रोंमें जिन (चमर व भूतानन्द आदि) दस इन्द्रोंका पूर्वमें निर्देश किया गया है वे दक्षिण दिशामें तथा शेष (वैरोचन व धरणानन्द आदि) दस इन्द्र उत्तर दिशामें स्थित हैं ।। २६-३१ ।।
उक्त बीस इन्द्रोंमेंसे चमरेन्द्रके चौंतीस (३४) लाख और वैरोचनके तीस (३०) लाख प्रमाण भवन जानना चाहिये । भूतानन्दके चवालीस (४४) लाख और धरणानन्दके चालीस (४०) लाख ही भवन हैं । वेणुके अड़तीस (३८) लाख और वेणुधारीके चौंतीस (३४) लाख, पूर्णके चालीस (४०) लाख और वशिष्ठके छहके वर्ग अर्थात् छत्तीस (६x६==३६) लाख; जलप्रभ, घोष, हरिषेण, अमित और अग्निशिख इनमेंसे प्रत्येकके संख्यामें पूर्ण इन्द्रके समान चालीस चालीस लाख (४००००००); जलकान्त, महाघोष, हरिकान्त, अमितबाहन
और पांचवां अग्निवाहन; इनमेंसे प्रत्येकके वशिष्ठके समान छत्तीस छत्तीस (३६०००००) लाख तथा वैलम्बके पचास लाख (५०००००० ) और प्रभंजनके छयालीस लाख (४६०००००) संख्या प्रमाण भवन जानना चाहिये ।। ३२-३७ ।। उपर्युक्त बीस भवनवासी इन्द्रोंके बीस उपेन्द्र भी होते हैं । वे उनके युवराजके समान होते हुए जीवितके अन्त अर्थात् मरणको प्राप्त होते हैं ।। ३८॥ यहां त्रिलोकप्रज्ञप्तिकी उपयोगी गाथायें -
एक एक इन्द्रके दस प्रकारके परिवार देव होते हैं - प्रतीन्द्र, त्रायस्त्रिश देव, सामानिक, दिशाइन्द्र (लोकपाल), तनुरक्ष (आत्मरक्ष), तीन पारिषद, सात अनीक, प्रकीर्णक, आभियोग्य
और किल्विषिक; ये क्रमसे इन्द्रके परिवार देव कहे गये हैं। इनमें इन्द्र राजाके सदश, प्रतीन्द्र युवराजके समान, त्रायस्त्रिंश देव पुत्रके सदृश, सामानिक देव पत्नीके समान, चार
१ आप वशिष्ठष्वट।
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