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[ सप्तमो विभागः ]
वक्ष्ये स्तुत्वा नुतानीशान् मनुष्यविबुधर्बुधैः । अधोलोकस्य संक्षेपं मुदा लब्धामृतोपमम् ॥१ चित्रा वज्रा च वैडूर्या लोहिताक्षा च मेदिनी । मसारकल्पा गोमेदा प्रवालेति च सप्तमी ॥ २ ज्योतिरसाञ्जना चैव तथैवाञ्जनमूलिका' । अङ्का स्फटिकसंज्ञा च चन्दना बर्बकेति च ॥३ बकुला पञ्चदश्युक्ता षोडशी च शिलाह्वया । सहस्रमाना चैककाप्यालोकान्ताच्च विस्तृता ॥४ इयं चित्रा ततो वज्रा वैडूर्या तु परा ततः । क्रमशोऽधःस्थिता एवं षोडशता वसुंधराः॥५ सहस्राणामशीतिश्च बाहल्यं चतुरुत्तरा । ततः सप्तदशी भूमिः पङ्काचा किल नामतः॥ ६
। ८४०००। ततोऽन्त्याष्टादशा भूमि हल्येन सहस्त्रिका । अशीतिगुणिता नाम्नाप्येषा चाम्बहुला किल ॥७
।८००००। योजनानामधस्त्यक्त्वा सहस्रमवनाविह। स्थानानि सन्ति देवीनां (?) प्रकीर्णानि समन्ततः॥८ रत्नप्रभेति तेनेयं भूरुक्ता गुणनामतः । तिर्यग्लोकाश्रिते तस्याः सहने चित्रनामके ॥९ व्यन्तराणामसंख्येया आलया जन्मभूमयः । संख्येयविस्तृता एव सर्वे ते चात्र भाषिताः ॥१०
विद्वान् मनुष्यों और देवोंके द्वारा वन्दित ऐसे जिनेन्द्रोंकी स्तुति करके हर्षसे प्राप्त हुए अमृतके समान अधोलोकके संक्षेपको कहता हूं ॥१॥ चित्रा, वजा, वैडूर्या, लोहिताक्षा, मसारकल्पा, गोमेदा, सातवीं प्रवाला, ज्योतिरसा, अंजना, अंजनमूलिका, अंका, स्फटिका, चन्दना, बर्बका, पन्द्रहवीं बकुला और सोलहवीं शिला नामकी; इन सोलह पृथिवियोंमें एक एकका प्रमाण (बाहल्य) एक हजार योजन है। ये सब पृथिवियां लोक पर्यन्त विस्तृत हैं ।। २.४॥ यह सबसे ऊपर चित्रा पृथिवी स्थित है, उसके नीचे वजा, उसके नीचे वैडूर्या ; इस प्रकारसे ये सोलह पृथिवियां क्रमसे नीचे नीचे स्थित हैं॥५॥ उनके नीचे सत्तरहवीं पंका नामकी पृथिवी स्थित है। उसका बाहल्य चौरासी हजार (८४०००) योजन प्रमाण है॥ ६ ॥ उसके नीचे अन्तिम अब्बहुला नामकी अठारहवीं पृथिवी है। उसका बाहल्य अस्सी हजार (८००००) योजन मात्र है ॥ ७॥
___ इस पृथिवीमें नीचे एक हजार (१०००) योजन छोड़कर सब ओर देवियोंके प्रकीर्णक स्थान हैं (?) ॥८॥ इसलिये इस पृथिवीका 'रत्नप्रभा' यह सार्थक नाम कहा गया है। तिर्यग्लोकके आश्रित एवं एक हजार योजन मोठी चित्रा नामक पृथिवीके ऊपर व्यन्तर देवोंके जन्मभूमिस्वरूप असंख्यात भवन हैं। यहां वे सब संख्यात योजन विस्तृत कहे गये हैं। ९-१० ॥ अठत्तर
१ आ प चूलिका । २. चाबहुला ।
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