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-६.२२५] षष्ठो विभागः
[१३१ आवृत्तयो ग्रहाणां' च आग्नेय्य इति भाषिताः । दीपस्य खलु वायव्यः सकलागमकोविदः ॥२१८ रविरिन्दुर्गहाश्चैव नक्षत्राणि च तारकाः । परियान्ति क्रमेणव जम्बूद्वीपादिमण्डले ॥२१९ शतानि सप्त पञ्चापि कोटीकोटयः प्रकाशिताः । भरतस्योर्ध्वयायिन्यस्तारका ज्ञानपारगः ॥२२०
।७०५००००००००००००००। द्विगुणा द्विगुणास्ताभ्यः क्रमात्पर्वतभूमिषु । आ विदेहेभ्य इत्युक्ता हानिश्च परतस्तथा ॥ २२१ हि १४१ ।। है २८२ ।। म ५६४ ।। ह ११२८ ।, । नि २२५६ ।। वि ४५१२।। जम्बूद्वीपे सहस्राणां शतं त्रिशस्त्रिकं पुनः। शतानि नव पञ्चाशत् कोटीकोटयोऽत्र तारकाः॥२२२
१३३९५ ।। द्विगुणा लवणोदे ता: षड्गुणा धातकीध्वजे । गुणिता एकविंशत्या कालोदे स्युश्च तारकाः॥२२३
२६७९।।धा ८०३७ ।। २८१२९५।। त्रिंशद्गुणिता ज्ञेयाः पुष्करार्धे च तारकाः। केवलज्ञानिभिर्दृष्टाः प्रत्यक्ष तास्तथा स्थिताः ॥ २२४
४८२२२।। पत्रिंशच्च शतानि स्युः षण्णवत्या युतानि च। द्वीपेष्वर्धतृतीयेषु नक्षत्राणि प्रसंख्यया ॥ २२५
।३६९६ ।
उत्तरमें और दक्षिणभाग दक्षिणमें होता है (?)॥२१७॥ समस्त आगमके ज्ञाता श्रुतकेवलियोंके द्वारा ग्रहोंकी आवृत्तियां निश्चयसे आग्नेयी तथा दीप (चन्द्र)की आवृत्तियां वायवी बतलाई गई हैं ॥२१८।। सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र और तारा ये क्रमसे ही जम्बूद्वीपके प्रथम मण्डलमें परिक्रमा करते हैं ।। २१९ ॥
ज्ञानके पारको प्राप्त हुए सर्वज्ञ देवोंके द्वारा भरत क्षेत्रके ऊपर गमन करनेवाले तारे संख्यामें सात सौ पांच कोड़कोड़ि प्रमाण बतलाये गये हैं ७०५०००००००००००००० ।। २२० ।। इसके आगे वे विदेह क्षेत्र तक पर्वत और क्षेत्रोंमें क्रमसे इनसे दूने दूने कहे गये हैं। उसके आगे उनकी उसी क्रमसे हानि होती गई है। जैसे- हिमवान् १४१ शून्य (०).१५, हैमवत २८२ शून्य १५, महाहिमवान् ५६४ शून्य १५, हरिवर्ष ११२८ शून्य १५, निषध २२५६ शून्य १५, विदेह ४५१२ शून्य १५, नील २२५६ शून्य १५, रम्यक ११२८ शून्य १५, रुक्मि ५६४ शून्य १५, हैरण्यवत २८२ शून्य १५, शिखरी १४१ शून्य १५, ऐरावत ७०५ शून्य १४ ॥ २२१ ॥ जम्बूद्वीपमें एक सौ तेतीस हजार नौ सौ पचास कोडाकोड़ी तारे हैं। शून्य (०) १४ के साथ७०५ +१४१०+२८२०+५६४०+११२८०+२२५६०+४५१२०+२२५६०+११२८०+५६४० +२८२०+१४१०+७०५=१३३९५ शून्य १५ ॥ २२२ ॥ वे तारे इनसे दूने लवण समुद्र में, छहगुणे घातकीखण्ड द्वीपमें, और इक्कीसगुणे कालोद समुद्रमें हैं- लवणोद २६७९ शून्य १६, धातकीखण्ड ८०३७ शून्य १६, कालोद २८१२९५ शून्य १५॥२२३।। जम्बूदीपस्थ ताराओंसे छत्तीसगुणे तारे पुष्कराध द्वीपमें स्थित जानना चाहिये १३३९५०४३६=४८२२२ शून्य १६ । वे तारे केवलज्ञानियोंके द्वारा प्रत्यक्षमें उसी प्रकारसे स्थित देखे गये हैं ।। २२४ ॥ अढ़ाई द्वीपमें सब नक्षत्र संख्यामें छत्तीस सौ छयानब हैं- जं. ५६+ल. ११२+धा. ३३६+का ११७६+पु.
१५ नुहाणा । २ ५ इत्युक्त्वा।
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