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-६.१९१] षष्ठो विभागः
[ १२७ मघा पुनर्वसू तारे तृतीये सप्तमे पथि । रोहिणी च तथा चित्रा षष्ठे मार्गे च कृत्तिका ॥ १८२ विशाखा चाष्टमे चानुराधा च दशमे पथि । ज्येष्ठा चैकादशे मार्ग शेषाः पञ्चदशेष्टकाः ॥१८३ हस्तमूलत्रिकं चैव मृगशीर्ष द्विकं तथा । पुष्यद्वितयमित्यष्टौ शेषताराः प्रकीर्तिताः ॥१८४ कृत्तिकासु पतन्तीषु मध्यं यन्त्यष्टमा मघाः । उदयन्त्यनुराधाश्च शेषेष्वेवं च योजयेत् ॥१८५ भरणी स्वातिराश्लेषा चार्दा शतभिषक् तथा । ज्येष्ठेति षड् जधन्याः स्युरुत्कृष्टाश्चोत्तरात्रयम् ॥ पुनर्वसु विशाखा च रोहिणी चेति षट् पुनः। अश्विनी कृत्तिका चानुराधा चित्रा मघा तथा ॥ १८७ मूलं पूर्वत्रिक पुष्यहस्तश्रवणरेवती । मृगशीर्ष धनिष्ठेति विघ्नपञ्च च मध्यमाः ॥ १८८ रविर्जघन्यभे तिष्ठेत् ससप्तदशमांशकम् । षड्दिनं मध्यमोत्कृष्ट भे तद् द्वित्रिगुणं क्रमात् ॥ १८९
दि६। । दि १३ । २ । दि २० । । अभिजिन्नामभेनेनः सपञ्चमचतुर्दिनम् । सप्तषष्ट्याप्तशून्यत्रिषण्मुहूर्त विधुश्चरेत् ॥ १९०
।४।६। । चन्द्रो जघन्यनक्षत्रे दिनार्ध मध्यमर्सके । दिवसं चोत्तमे भे च तिष्ठेत् सार्धदिनं ध्रुवम् ॥ १९१
मार्ग में संचार करते हैं ।। १८१॥ मघा और पुनर्वसु ये दो तारा (नक्षत्र) उसके तृतीय मार्गमें संचार करते हैं। रोहिणी तथा चित्रा ये दो नक्षत्र उसके सातवें मार्गमें संचार करते हैं। कृत्तिका नक्षत्र उसके छठे मार्गमें, विशाखा आठवें मार्ग में, अनुराधा दसवें मार्ग में ज्येष्ठा ग्यारहवें मार्गमें तथा शेष आठ नक्षत्र पन्द्रहवें मार्ग में संचार करते हैं। हस्त, मूल आदि तीन (मूल, पूर्वाषाढा, उत्तराषाढा), मृगशीर्षा व आर्द्रा, तथा पुष्य और आश्लेषा ये आठ शेष तारा कहे गये हैं ।। १८२-८४ ।।
__ कृत्तिका नक्षत्रोंके पतन अर्थात् अस्त होनेके समयमें उनके आठवें मघा नक्षत्र मध्यान्ह कालको प्राप्त होते हैं तथा मघासे आठवें अनुराधा नक्षत्र उदयको प्राप्त होते हैं। इसी क्रमकी योजना शेष नक्षत्रोंके भी विषयमें करनी चाहिये ।। १८५॥
भरणी, स्वाति, आश्लेपा, आर्द्रा, शतभिषक् तथा ज्येष्ठा ये छह नक्षत्र जघन्य हैं। तीन उत्तरा (उत्तरा फाल्गुनी, उत्तराषाढा, उत्तरा भाद्रपदा), पुनर्वसु, विशाखा और रोहिणी ये छह नक्षत्र उत्कृष्ट हैं । अश्विनी, कृत्तिका, अनुराधा, चित्रा, मघा, मूल, तीन पूर्वा (पूर्वा फाल्गुनी पूर्वाषाढा, उत्तरा भाद्रपदा), पुष्य, हस्त, श्रवण, रेवती, मृगशीर्ष और धनिष्ठा ये तीनसे गुणित पांच अर्थात् पन्द्रह नक्षत्र मध्यम हैं ।। १८६-१८८॥
सूर्य जघन्य नक्षत्रके ऊपर छह दिन और एक दिनके दस भागों में सात भाग (६%-दिन) प्रमाण अर्थात् छह दिन इक्कीस मुहूर्त, इससे दूना १३३ दिन मध्यम नक्षत्रके ऊपर तथा उससे तिगुना (२०१०) उत्कृष्ट नक्षत्रके ऊपर रहता है ।। १८९ ।। अभिजित् नक्षत्रके साथ चार दिन
और एक दिनके पांचवें भाग प्रमाण पूर्य तथा सड़सठसे भाजित शून्य, तीन और छह अंक प्रमाण (३७) मुहूर्त तक चन्द्र संचार करता है । १९० ।। चन्द्र जघन्य नक्षत्रके ऊपर आधा दिन, मध्यम नक्षत्रके ऊपर एक दिन तथा उत्तम (उत्कृष्ट) नक्षत्रके ऊपर डेढ़ दिन रहता है ।।१९१।।
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