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षष्ठो विभागः ।
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डिवाए वासरादो कोहि पडि ' स [सस ] हरस्ससो राहू । एक्केक्ककलं मुंचइ पुण्णमियं जाव लंघणदो ॥ अहवा ससहर्राबबं पण्णरस दिणाइ तं सहावेण । कसणाभं सुकलाभं तेत्तियमेत्ताणि परिणमदि ॥ ९ शुक्रो जीवो बुधो भौमो राह्वरिष्टशनैश्चराः । धूमाग्निकृष्णनीलाः स्यू रक्तः शीतश्च केतवः ॥ १६५ श्वेतकेतुर्ज लास्यश्च पुष्पकेतुरिति ग्रहाः । प्रतिचन्द्र ग्रहा एते कृत्तिकादीनि भानि च ।। १६६ षट्ताराः कृत्तिकाः प्रोक्ता आकृत्या व्यजनोपमाः । शकटोधिसमा ज्ञेया रोहिण्यः पञ्चतारकाः ॥ मृगस्य शिरसा तुल्यास्तिस्रः सौम्यस्य तारकाः । दीपिकावद्भवत्यार्द्रा एकतारा च सोदिता ॥१६८ पुनर्वसोश्च षट्तारा व्याख्यातास्तोरणोपमाः । पुष्यस्य तित्रस्ताराश्च समाश्छत्रेण भाषिताः ॥ १६९ वल्मीकि शिखया तुल्या आश्लेषाः षडुदाहृताः । चतस्रश्च मघास्तारा गोमूत्राकृतयो मताः ॥ १७० पूर्वे द्वे शरवत्प्रोक्ते उत्तरे युगवत् स्थिते । पञ्च हस्तोपमा हस्ताः चित्रैकोत्पलसंनिभाः ॥ १७१ दीपोपमा भवेत्स्वातिरेकतारा च संख्यया । विशाखायाश्चतुस्तारास्ताश्चाधिकरणोपमाः ॥ १७२ अनुराधा षडेवोक्ता मुक्ताहारोपमाश्च ताः । वीणाशृङ्गसमा ज्येष्ठा तिस्रस्तस्याश्च तारकाः ॥ १७३ मूलो वृश्चिकवत्प्रोक्तो नव तस्यापि तारकाः । आप्यं 'दुष्कृतवापीवच्चतस्रस्तस्य तारकाः ॥
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फिर वह राहु प्रतिपदाके दिनसे प्रत्येक वीथीमें पूर्णिमा तक उसकी एक एक कलाको छोड़ता है ॥ ८ ॥ अथवा वह चन्द्रबिम्ब स्वभावसे ही पन्द्रह दिन कृष्ण कान्तिस्वरूप और उतने ही दिन धवल कान्तिस्वरूप परिणमता है ।। ९ ।
शुक्र, बृहस्पति, बुध, मंगल, राहु, अरिष्ट, शनैश्चर, धूम, अग्नि, कृष्ण, नील, रक्त और शीत केतव, श्वेतकेतु, जलकेतु और पुष्पकेतु ये प्रत्येक चन्द्रके ग्रह तथा कृत्तिका आदि अट्ठाईस नक्षत्र होते हैं ।। १६५-६६ ।।
कृत्तिका नक्षत्रके छह तारा कहे गये हैं जो आकार में वीजनाके समान होते हैं । रोहिणीके पांच तारा गाड़ीकी उद्धिकाके समान जानना चाहिये ।। १६७॥ मृगशीर्षाके तीन तारा मृगके शिरके सदृश होते हैं । आर्द्रा नक्षत्र एक तारावाला है और वह दीपक के समान कहा गया है ।। १६८ ।। पुनर्वसुके छह तारा हैं जो तोरणके सदृश कहे गये हैं। पुष्यके तीन तारा हैं और वे छत्रके समान कहे गये हैं ।। १६९ ।। आश्लेषा नक्षत्र छह तारासे संयुक्त होता है, वे तारा वल्मीक (बांवीं) की शिखाके समान कहे गये हैं । मघाके चार तारा हैं जो गोमूत्रके समान आकार वाले माने गये हैं ।। १७० ।। पूर्वाके दो तारा होते हैं और वे शर (बाण) के समान कहे गये हैं । उत्तरा नक्षत्र दो ताराओंसे सहित होता है, वे तारा युगके समान स्थित हैं । हस्त नक्षत्रके हाथके आकारके पांच तारा होते हैं । चित्रा नक्षत्र के उत्पल (नील कमल ) के समान एक तारा होता है ॥ १७१ ॥ संख्यामें एक तारावाला स्वाति नक्षत्र दीपकके समान होता है। विशाखाके चार तारा होते हैं और वे अधिकरण के सदृश होते हैं ।। १७२ ।। अनुराधा नक्षत्र के छह ही तारा कहे गये हैं और वे मुक्ताहार (मोतियोंकी माला) के समान होते हैं। ज्येष्ठा नक्षत्र वीणाशृंग के समान होता है और उसके तीन तारा होते हैं ॥ १७३॥ मूल नक्षत्र वृश्चिक ( विच्छू) के समान कहा गया है, उसके नौ तारा होते हैं। आप्य ( पूर्वाषाढा ? ) नक्षत्र दुष्कृत वापीके समान
१ प पड । २ आप नीला । ३ ब शकटोद्रि । ४ आ प 'त्याद्रा । ५ अतोऽग्रे १७२तमश्लोकपर्यन्तः पाठ आ-प- प्रत्योर्नोपलभ्यते । ६ आ प दुःकृत |
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