________________
१२४ ]
लोकविभागः
[६.१६३
आवृत्तिलब्धनक्षत्रं दशयुक्तं ' षष्ठकेऽष्टमे । दशमे रूपहीनं च नक्षत्रमिषुपे भवेत् ॥ १६३ चन्द्रस्य षोडशो भागः शुक्ले शुक्लो विजायते । कृष्णपक्षे भवेत्कृष्ण इति शास्त्रे विनिश्चितः ॥ १६४ उक्तं च त्रिलोकप्रज्ञप्तौ [ ७, २०५ - २०८, २१० -१२, २१४-१५ ] -
राहूण पुरतलाणं दुवियप्पाणि हवंति गमणाणि । दिणपव्ववियप्पेहि दिणराहू ससिसरिच्छगई ३ ॥ १ जस्सिं मग्गे ससहबिबं दीसेदि तेसु परिपुण्णं । सो होदि पुण्णिमक्खो दिवसो इह माणुसे लोए ॥ २ तव्वीहीयो लंघिय दीवस्स हुदासमारुददिसादो । तदणंतरवीहीए यंति हु दिणराहुससिबिबा ॥ ३ ताहे ससहरमंडल सोलसभागेसु एक्कभागंसो । आवरमाणो दीसह राहूलंघण विसेसेण ॥ ४ तदनंतर मग्गाई णिचं लंघंति राहुससिबिबा । पवणग्गिदिसाहितो एवं सेसासु वीहीसु ॥ ५ ससिबिबस्स दिणं पडि एक्केक्कपहम्मि भागमेक्केक्कं । पच्छादेदि हु राहू पण्णरसकलाओ परियंतं ॥ इदि एक्क्कलाए आवरिदाए खु राहुबिबेण । चंदेक्ककला मग्गे जस्स दीसेदि सो य अमवासो ॥ ७
५
www
करणसूत्र के अनुसार नौमेंसे एक कम करके शेष आठको छहसे गुणित करना चाहिये । इस प्रकारसे जो राशि प्राप्त हो उसमें एक अंक और मिला देनेसे उनंचास होते हैं - ( ९ - १ ) x ६+१=४९. अब चूंकि यह राशि १५ से अधिक है अत एव उसमें १५ का भाग देना चाहिये - ४९ ÷ १५ = ३ शेष ४. इस प्रकार जो ४ अंक शेष रहते हैं उनसे उक्त ९वीं आवृत्तिकी चतुर्थी तिथि तथा सम संख्या होनेसे शुक्ल पक्ष समझना चाहिये । ( देखिये पीछे श्लोक १४१ में ५वीं दक्षिणायनकी आवृत्ति ) । उपर्युक्त करण सूत्रके ही अनुसार विवक्षित नौवें विषुपकी तिथि इस प्रकारसे प्राप्त होती है- (९- १) ४६+३=५१; ५१ ÷ १५ = ३ शेष ६. इस प्रकार शेष ६ सम संख्यासे शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि समझना चाहिये । ( देखिये पीछे श्लोक १५९ )
आवृत्ति में जो नक्षत्र प्राप्त हो उसमें दस मिलाकर छठी, आठवीं और दसवीं आवृत्तिमें एक अंक कम कर देनेपर इषुपमें नक्षत्र होता है ।। १६३ ।।
चन्द्रका सोलहवां भाग शुक्ल पक्षमें शुक्ल तथा कृष्ण पक्ष में कृष्ण होता है, ऐसा आगम में निश्चित किया गया है ।। १६४ ।। त्रिलोकप्रज्ञप्तिमें कहा भी है
दिन और पर्व के भेदोंसे राहुओंके पुरतलोंके गमन दो प्रकारके होते हैं । इनमें दिनराहु चन्द्रमा के समान गतिवाला होता है ॥ १ ॥ उनमेंसे यहां मनुष्यलोकमें चन्द्रबिम्ब जिस मार्ग में पूर्ण दिखता है उस दिवसका नाम पूर्णिमा होता है ।। २ ।। दिनराहु और चन्द्रबिम्ब उन वीथियों को लांघकर क्रमसे जंबूद्वीपकी आग्नेय और वायव्य दिशासे अनन्तर वीथीमें जाते हैं || ३ || उस समय (द्वितीय वीथीको प्राप्त होनेपर ) चन्द्रमण्डल के सोलह भागोंमेंसे एक भाग राहुके लंघन ( गमन ) विशेषसे आच्छादित होता हुआ दिखता है ॥ ४ ॥ इस प्रकार वे और चन्द्रबिम्ब शेष वीथियोंमें भी निरन्तर वायु और आग्नेय दिशासे अनन्तर मार्गोको लांघते हैं || ५ || राहु प्रतिदिन एक एक मार्ग में पन्द्रह कलाओंके आच्छादित होने तक चन्द्रबिम्बके एक एक भागको आच्छादित करता है || ६ || इस प्रकार राहुबिम्बके द्वारा एक एक कलाका आवरण करनेपर जिस मार्ग में चन्द्रकी एक ही कला दिखती है वह अमावस्याका दिन होता है ॥७॥
राहु
१ व युके । २ आप दियध्येहि । ३ आप सरित्थगई । ४ आ प भागस्सो । ५ आ प लग्घंति ।
www.jainelibrary.org
Jain Education International
For Private & Personal Use Only