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-६.१६२]
षष्ठो विभागः
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चत्वारिंशत्यतीतेषु त्र्यधिकासु च पर्वसु । पुनर्वसौ च षष्ठ्यां च चतुर्थमिषुपं भवेत् ।। १५४ पञ्चपञ्चस्वतीतेषु पर्वसु द्वादशे दिने । उत्तरा प्रोष्ठपादा ह्वे पञ्चमं विषुवं मतम् ॥ १५५ अष्टषष्टयामतीतेषु समस्तेषु च पर्वसु । तृतीयायां मंत्रे च विषुवं षष्ठमिष्यते ॥ १५६ अशत्यां समतीतेषु संपूर्णेषु तु पर्वसु । मघायां च नवम्यां च सप्तमं विषुवं भवेत् ॥ १५७ त्रिनवत्यासतीतेषु क्रमात्प्राप्तेषु पर्वसु । पञ्चदश्यां तिथौ चापि अश्वयुज्यष्टसं ३ भवेत् ॥ १५८ शते पञ्चोत्तरे यातेष्वतः कालेन पर्वसु । उत्तराषाढनक्षत्रे षष्ट्यां च नवमं भवेत् ॥ १५९ पर्वस्वेवमतीतेषु शते सप्तदशोत्तरे । द्वादश्यामुत्तराद्यायां फाल्गुन्यां दशमं भवेत् ॥ १६० द्विष्टेषुपं रूपहीनं षड्गुणितं भवेत् । पर्व तस्य दलं मानं वर्तमानायने तिथेः ।। १६१ षड् नेकोनपदं रूप त्रियुतं तिथिमानकम् । आवृत्तेरिषुपस्येह विषमे कृष्णः समे सितः ॥ १६२
स्वाति नक्षत्र में तीसरा विषुप होता है ।। १५३ ।। तीन अधिक चालीस अर्थात् तेतालीस पर्वोके वीनेपर षष्ठी तिथिको पुनर्वसु नक्षत्रमें चौथा विषुप होता है ।। १५४ ।। पचवन पर्वोंके वीतनेपर द्वादशी के दिन उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र में पांचवां विषुप होता है ।। १५५ ।। समस्त अड़सठ पर्वोके बीतनेपर तृतीया तिथिको मैत्र ( अनुराधा ) नक्षत्र में छठा विषुप होता है ।। १५६ ॥ सम्पूर्ण अस्सी पर्वोंके वीतनेपर नवमी तिथिको मघा नक्षत्रमें सातवां विषुप होता है ॥ १५७ ॥ क्रमसे प्राप्त हुए तेरानबै पर्वोके वीत जानेपर पंचदशी ( अमावस्या) तिथिको अश्विनी नक्षत्रमें आठवां विषुप होता है ।। १५८ ।। एक सौ पांच पर्वोंके वीत जानेपर षष्ठीके दिन उत्तराषाढ़ा नक्षत्रमें नौवां विषुप होता है ।। १५९ ।। इस प्रकार एक सौ सत्तरह पर्वोंके वीत जानेपर द्वादशी तिथिको उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्रमें दसवां विषुप होता है ।। १६० ।।
दुगुने अभीष्ट इषुप (विषुप ) मेंसे एक अंकको कम करके शेषको छहसे गुणित करने - पर पर्वका प्रमाण प्राप्त होता है । उसको आधा करनेसे वर्तमान अयन (विषुप) की तिथिसंख्या होती है । [ यदि वह पर्वका आधा भाग १५ से अधिक हो तो उसमें १५ का भाग देनेपर जो लब्ध हो उसे पर्वसंख्यामें जोड़कर शेषको तिथिका प्रमाण समझना चाहिये । ] ।। १६१ ।।
उदाहरण - जैसे यदि नौवां विषुप अभीष्ट है तो नौको दुगुणा करके उसमें से एक अंकको कम करना चाहिये । इस प्रकारसे जो प्राप्त हो उसे छहसे गुणित करे - (९×२ ) - १x६=१०२ यह पर्वका प्रमाण हुआ । अब चूंकि इसका अर्ध भाग ५१ होता है जो १५ से अधिक है, अत एव ५१ में १५ का भाग देनेपर जो ३ लब्ध होते हैं उन्हे पर्वप्रमाणमें मिलाकर शेष ६ को तिथि समझना चाहिये । इस प्रकार विवक्षित नौवें विषुपमें पर्वका प्रमाण १०२ + ३ = १०५ और तिथिका ६ ( षष्ठी) प्राप्त होता है । (देखिये पीछे श्लोक १५९)
एक कम आवृत्ति के पदको छहसे गुणित करके उसमें एक अंकके मिलानेपर आवृत्तिकी तिथिसंख्या तथा तीनके मिलानेपर इषुपकी तिथिसंख्या होती है । इनमें तिथिसंख्या के विषम होनेपर कृष्ण पक्ष तथा उसके सम होनेपर शुक्ल पक्ष होता है ।। १६२ ॥
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उदाहरण -- जैसे यदि हम नौवीं आवृत्तिकी तिथिको जानना चाहते हैं तो उक्त
१ प "मिषुणं । २ व प्रौष्ठ । ३ प युज्ज्यष्टमं । ४ आ प स्थितः ।
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