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________________ १२० ] लोकविभागः [६.१३०चारक्षेत्राणि कालोदे भवन्त्येकं च विशतिः । षट्त्रिंशत्पुष्करार्धे च चारक्षेत्राणि सन्ति च ॥ १३० त्र्यशीतिशतदिनानि स्युरभिजिन्मुख्येषु चायने । उत्तरेऽधिकदिवप्ताश्च यश्चकायने गताः॥१३१ दिनकषष्टिभागश्चेत्प्रत्येकपथलङयनम् । किं त्र्यशीतिशतस्येति गुणेऽधिकदिनानि वै ॥ १३२ प्र१ फ । इ१८३।। दिने दिने मुहूर्त तु वर्धमाना विभाष्यते । मासेन दिवसो वृद्धिवर्षेण द्वादशव ते ॥ १३३ वर्षद्वयेन सार्धन जायतेऽधिकमासकः । पञ्चवर्षयुगे 'मासावधिको भवतस्तथा ॥१३४ सत्रिपञ्चमभागं च पुष्ये गत्वा चतुर्दिनम् । उत्तरायणनिष्पत्तिः शेषेष्वष्टदिनेषु च ॥ १३५ अधिक (१८०+३३०=५१०) है । ये चारक्षेत्र लवण समुद्र में दो, धातकीखण्ड द्वीपमें छह कालोद समुद्रमें इक्कीस, और पुष्करार्ध द्वीपमें छत्तीस हैं ।। १२९-३० ॥ विशेषार्थ- जंबूद्वीपमें २ सूर्य हैं । उनका चारक्षेत्र एक ही है । यह चारक्षेत्र जंबूद्वीपके भीतर १८० और लवण समुद्रमें सूर्यबिम्ब (३६) से अधिक ३३०१६ इस प्रकार समस्त चारक्षेत्र १८०+३३०१६-५१०१६ योजन मात्र है । इतने चारक्षेत्रमें सूर्यकी १८४ वीथियां हैं । इनमेंसे क्रमशः प्रतिदिन दोनों सूर्य मिलकर एक एक वीथीमें संचार करते हैं । लवण समुद्र में ४ सूर्य हैं । इनमें से दो एक ओर और दो दूसरी ओर आमने-सामने रहकर संचार करते हैं। इस प्रकार लवण समुद्र में ५१०-५१० योजनके २ चार क्षेत्र हैं । धातकीखण्ड द्वीपमें १२ सूर्य हैं। इनमेंसे २-२ का एक ही चारक्षेत्र होनेसे वहां ५१०-५१० योजनके ६ चार क्षेत्र हैं । कालोद समुद्रमें ४२ तथा पुष्करार्धमें ७२ सूर्य हैं । अत एव उक्त रीतिसे वहां क्रमशः २१ और ३६ चार क्षेत्र हैं। ___ अभिजित् आदि जघन्य, मध्यम व उत्कृष्ट नक्षत्रोंके उत्तरायणमें एक सौ तेरासी (१८३) दिन होते हैं । इनसे अतिरिक्त अधिक दिन होते हैं । तीन गत दिवस होते हैं ॥१३१॥ एक पथके लांघनेमें यदि दिनका इकसठवां (११) भाग उपलब्ध होता है तो एक सौ तेरासी पथोंके लांघनेमें क्या उपलब्ध होगा, इस प्रकार गुणा करनेपर निश्चयसे अधिक दिन प्राप्त होते हैं । यहां प्रमाणराशि १ पथ, फलराशि दिनका ६१वां भाग (1) और इच्छाराशि १८३ पथ हैं- x१८३:१=३ दिन ।। १३२ । इस प्रकार प्रतिदिन एक एक मुहूर्तकी वृद्धि होकर एक मासमें एक दिन (३० मुहूर्त) तथा एक वर्षमें बारह दिनकी वृद्धि बतलाई गई है ।।१३३।। उक्त क्रमसे वृद्धि होकर अढाई वर्ष में एक अधिक मास तथा पांच वर्ष प्रमाण एक युगमें दो अधिक मास हो जाते हैं ।। १३४ ।। पुष्य नक्षत्रमें पांच भागोंमें से तीन भाग सहित चार (४३) दिन जाकर उत्तरायणकी समाप्ति होती है तथा शेष नक्षत्रोंमें आठ दिन और एक दिनके पांच भागोंमें से चार भाग (८६ दिन) जाकर उत्तरायणकी समाप्ति होती है । श्रावण कृष्णा प्रतिपदाके दिन अभ्यन्तर १५ मास । २५ पंचमागं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.001872
Book TitleLokvibhag
Original Sutra AuthorSinhsuri
AuthorBalchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2001
Total Pages312
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Geography
File Size22 MB
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