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________________ षष्ठो विभागः [११५ श्रावणेश्यन्तरे मार्गे वर्तमाने रवौ दिने । अष्टादशमुहूर्ताश्च द्वादशव निशा भवेत् ॥ ८८ षड् द्विकं पञ्च चत्वारि नव तापोऽभ्यन्तरे पथि। दशांशान सप्त तस्यार्घ पुरः पश्चाद्भवेद् रवेः॥८९ । ९४५२६ । । तस्या, ४७२६३ । । त्रिषष्टि च सहस्राणि पुनः सप्तदशैव च । चतुरः पञ्च भागांश्च तमःपरिधिरिष्यते ॥ ९० ।६३०१७ ।। वैशाखे कातिके मध्ये वर्तमाने दिवाकरे । पञ्चदशमुहूर्ताश्च दिनं रात्रिस्तथैव च ॥ ९१ नवसप्तति सहस्राणि पञ्चसप्तति शतं पुनः । द्विभागं मध्यमे तापस्तमश्च परिधौ भवेत् ।। ९२ ।७९१७५ । । वर्तमाने रवौ बाह्य माघे मासे दिनं भवेत् । द्वादशव मुहूर्ताश्च निशाष्टादश मुहूर्तकम् ॥ ९३ त्रिषष्टि च सहस्राणि द्विष्टि षट्छतानि च । चतुरः पञ्चभागांश्च तापः स्याद् बाह्यमण्डले॥९४ ।६३६६२ । । नवति च सहस्राणि पञ्चान्यानि चतुःशतम् । चत्वारि नवति पञ्चमांशं बाह्ये तमो मवेत् ॥ ९५ । ९५४९४ । । परिधीनां दशांशेषु' द्वयो रात्रिदिनं त्रिषु । अभ्यन्तरे स्थिते भानौ विपरीते तु बाहिरे ॥ ९६ श्रावण मासमें सूर्यके अभ्यन्तर वीथीमें रहनेपर अठारह (१८) मुहूर्त प्रमाण दिन और बारह (१२) मुहूर्त प्रमाण रात्रि होती है ।। ८८ ॥ सूर्यके अभ्यन्तर पथमें स्थित होनेपर वहां तापक्षेत्रकी परिधिका प्रमाण अंककमसे छह, दो, पांच, चार और नौ अर्थात् चौरानबै हजार पांच सौ छब्बीस योजन और एक योजनके दस भागोंमेंसे सात भाग (९४५२६३. यो.) मात्र होता है।।८९।।सूर्यके अभ्यन्तर पथमें स्थित होनेपर तमक्षेत्रकी परिधि तिरेसठ हजार सत्तरह योजन और एक योजनके पांच भागोंमेंसे चार भाग (६३०१७६)प्रमाण मानी जाती है।।९०॥ वैशाख और कार्तिक मासमें मध्यम पथमें सूर्यके वर्तमान होनेपर पन्द्रह मुहूर्त प्रमाण दिन और उतनी ही रात्रि भी होती है ।। ९१ ।। उस समय मध्यम परिधिमें तापका प्रमाण उन्यासी हजार एक सौ पचत्तर योजन और दो भाग (७९१७५३ यो.) मात्र होता है । तमकी परिधिका भी प्रमाण इतना ही होता है ।। ९२ ॥ माघ मासमें सूर्य के बाह्य पथमें वर्तमान होनेपर दिन बारह मुहर्त प्रमाण और रात्रि अटारह मुहूर्त प्रमाण होती है ।। ९३ ।। उस समय बाह्य वीथीमें तापकी परिधि तिरेसठ हजार छह सौ बासठ योजन और एक योजनके पांच भागों से चार भाग (६३६६२६) प्रमाण होती है ॥ ९४ । इसी बाह्य वीथी में तमकी परिधि नब्बे और अन्य पांच अर्थात् पंचानबै हजार चार सौ चौरानबै योजन और एक योजनके पांचवें भाग (९५४९४६) प्रमाण होती है ।। ९५ ॥ सूर्यके अभ्यन्तर मार्गमें स्थित रहनेपर परिधियोंके दस भागोंमेंसे दो भागोंमें रात्रि और तीन भागोंमें दिन होता है, तथा उसके बाह्य मार्गमें स्थित होनेपर उसके विपरीत अर्थात् १५ दशांतेषु । २ ब विपरीती। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001872
Book TitleLokvibhag
Original Sutra AuthorSinhsuri
AuthorBalchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2001
Total Pages312
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Geography
File Size22 MB
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