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-६.५८ षष्ठो विभागः
[१०९ बाह्यादेककमार्गस्य परिधिश्चान्तरं पुनः । स्वस्वक्षेपेण हीनं स्याद्यावत्प्रथममण्डलम् ॥ ५३ ।। चत्वारिंशच्च चत्वारि सहस्राणि शताष्टकम् । विशतिश्चान्तरं मेरोश्चन्द्रस्यासन्नमण्डले ॥ ५४ त्रिंशद्योजनं तस्मिन् उत्तरं सप्तविंशतिः । चतुःशतस्य भागाश्च नवसप्ततिशतं भवेत् ॥ ५५ उत्तरेण सहतेन तदनन्तरमन्तरम् । पुनस्तेनैव संयुक्तं तृतीयं त्वन्तरं भवेत् ॥ ५६ चत्वारिंशच्च पञ्चापि सहस्राण्यथ सप्ततिः । पञ्चाधिका च देशोना मेविन्दोर्मध्यमान्तरम् ॥५७
।४५०७५ । ऊनप्रमाणं । चत्वारिंशत्पुनः पञ्च सहस्राणि शतत्रयम् । देशोना चान्तरं त्रिशन्मेविन्दोर्बाह्यमण्डले ॥ ५८
।४५३३० । ऊनप्रमाणं ।
(१७३६४१८३)=३१८३१४ यो. ।। ५२ ।। बाह्य वीथीसे लेकर प्रथम वीथी तक प्रत्येक वीथीका यह परिधिप्रमाण और अन्तर उत्तरोत्तर अपने अपने प्रक्षेपसे कम है ॥ ५३॥
मेरु पर्वतसे प्रथम वीथीमें स्थित चन्द्रका अन्तर चवालीस हजार आठ सौ बीस ४४८२० योजन मात्र है ।। ५४ ॥ द्वितीय आदि वीथियोंमें स्थित चन्द्रके उपर्युक्त अन्तरको लाने के लिये यहां चयका प्रमाण छत्तीस योजन और एक योजनके चार सौ सत्ताईस भागोंमेंसे एक सौ उन्यासी भाग (३६१५७) मात्र है ।। ५५ ।। मेरुसे प्रथम वीथीमें स्थित चन्द्रके पूर्वोक्त अन्तरप्रमाणमें इस चयके मिला देनेसे अनन्तर (द्वितीय) वीथीमें स्थित चन्द्र और मेरुके बीचके अन्तरका प्रमाण प्राप्त होता है । फिर इस अन्तरप्रमाणमें उसी चयको मिला देनेसे तृतीय अन्तरका प्रमाण होता है ।। ५६ ॥
विशेषार्थ- सूर्यके समान चन्द्रमाका भी चारक्षेत्र ५१०१६ ३११५० योजन प्रमाण ही है (देखिये पीछे श्लोक ४५का विशेषार्थ) । इसमें चन्द्रवीथियां १५ हैं। इनमें से वह प्रतिदिन क्रमशः एक एक वीथीमें संचार करता है। इस चारक्षेत्रमेंसे उक्त १५ वीथियोंके समस्त विस्तारको कम करके शेषमें एक कम वीथियोंकी संख्याका भाग देनेपर उनके बीचके अन्तरका प्रमाण प्राप्त होता है- समस्त चारक्षेत्र ५१०१६ = ३११५०; समस्त वीथियोंका विस्तार ६ ४१५=१० ; ३११८-: (१५-१)=३५३३४ यो.। इसमें चन्द्रबिम्बके विस्तारको मिला देनेसे चन्द्रके प्रतिदिनके गमनक्षेत्रका प्रमाण होता है- ३५२३४+६ = ३६१५७ यो.।
सूर्यके समान चन्द्रकी भी अभ्यन्तर वीथीका विस्तार ९९४४० योजन तथा उसमें स्थित चन्द्र और मेरुके मध्यगत अन्तरका प्रमाण ४४८२० योजन है। इस अन्तरप्रमाणमें प्रतिदिनके गमनक्षेत्रको मिला देनेसे द्वितीय वीथीमें स्थित चन्द्र और मेरुके मध्यगत अन्तरका प्रमाण होता है । ४४८२०+३६१५७ = ४४८५६१५७ यो. । इस प्रकार पूर्व पूर्वके अन्तरप्रमाणमें उत्तरोत्तर चन्द्रकी प्रतिदिनकी उपर्युक्त गतिके प्रमाणको मिलाते जानेसे तृतीय एवं चतुर्थ आदि आगेकी वीथियोंमें स्थित चन्द्र और मेरुके मध्यगत अन्तरका प्रमाण प्राप्त होता है।
__ मेरु और चन्द्रके मध्यम अन्तरका प्रमाण पैंतालीस हजार पचत्तर योजनसे किंचित् , कम है-- ४४८२०+ (३६२५६४१) = ४५०७४३५ यो. ॥ ५७ ॥ बाह्य (१५वीं) वीथीमें स्थित चन्द्र और मेरुके मध्यगत अन्तरका प्रमाण पैंतालीस हजार तीन सौ तीस योजनसे किंचित् (क) कम है-४४८२०+ (३६१३७४१४)=४५३२९१३ यो. ॥५८।।
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