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________________ [१०५ -६.३२] षष्ठो विभागः उद्दिष्टास्त्रिगुणाश्चन्द्रा धातक्यादिषु ते क्रमात् । अतिक्रान्तेन्दुभिर्युक्ता' द्वीपे वा सागरेऽपि वा ॥२६ चत्वारिंशच्छतं चन्द्राश्चत्वारोऽपि च पुष्करे । द्विनवत्यधिकं प्राहुः पुष्करोदे चतुःशतम् ॥ २७ अष्टाशीतिग्रहा' इन्दोः साष्टा भानां च विशतिः। एककस्य तु विज्ञेयं रवयः शशिभिः समाः॥२८ ।२८। समुद्रे त्रिशतं त्रिशद् द्वीपे साशीतिकं शतम् । प्रविश्य चरतोऽन्दू मण्डलानि च लक्षयेत् ॥ २९ ३३०। १८०। वीश्यः पञ्चदशेन्दोः स्युरेकोनान्यन्तराणि च । द्विशतं षोडशोनं तु रवे रूपोनमन्तरम् ॥ ३० । १५। १४ । लवणे द्विगुणा बीय्यो रवेश्चन्द्रस्य चोदिताः । पृथारूपोनका वीभ्यश्चान्तराणि च लक्षयेत् ॥ ३१ ३० । ३६८। नवतिः खलु चन्द्राणां वीथ्यः स्युर्धातकीध्वजे । एकादश शतानि स्युश्चतुरग्राणि भास्वताम् ॥ ३२ ।११०४। +४२+७२=१३२) होती है ।। २४-२५ ॥ धातकीखण्ड आदि विवक्षित द्वीप-समुद्रों में जितने चन्द्रोंका निर्देश किया गया है आगेके द्वीप अथवा समुद्र में वे क्रमसे तिगुणे होकर पिछले द्वीपसमुद्रोंकी चन्द्रसंख्यासे अधिक हैं ॥ २६ ॥ __उदाहरण- (१) धातकीखण्ड द्वीपमें १२ चन्द्र बतलाये गये हैं । इनको तिगुना करके प्राप्त संख्या में पिछले द्वीप-समुद्रों ( लवणोद ४+जं. द्वी. २=६ ) की चन्द्रसंख्याको जोड़ देनेसे आगेके कालोदक समुद्रमें स्थित चन्द्रोंकी संख्या प्रात हो जाती है । जैसे-१२४३+६=४२. (२) कालोदक समुद्र में ४२ चन्द्र स्थित हैं । इन्हें तिगुना करके प्राप्त राशिमें पिछली चन्द्रसंख्याको मिला दीजिये । इस प्रकारसे आगे पुष्करद्वीपकी चन्द्रसंख्या प्राप्त हो जायेगी। जैसे-४२४३+ (१२+४+२)=१४४. पुष्कर द्वीपमें एक सौ चालीस और चार अर्थात् एक सौ चवालीस (१४४)तथा पुष्करोद समुद्र में चार सौ बानबै[१४४४३+ (४२+१२+४-२)=४९२] चन्द्र अवस्थित हैं ॥२७॥ एक एक चन्द्रके अठासी (८८) ग्रह तथा आठ सहित बीस अर्थात् अट्ठाईस (२८) नक्षत्र जानना चाहिये । सूर्य चन्द्रोंके ही समान होते हैं ॥ २८ ॥ सूर्य और चन्द्रमा समुद्र (लवणोद) में तीन सौ तीस (३३०) तथा द्वीप (जंबूद्वीप) के भीतर एक सौ अस्सी योजन प्रविष्ट होकर संचार करते हैं । उनकी वीथियां इस प्रकार जानना चाहिये ।। २९ ।। जंबूद्वीपमें चन्द्रकी पन्द्रह (१५) वीथियां और उनके अन्तर उनसे एक कम अर्थात् चौदह, (१४) हैं । सूर्यकी वीथियां सोलह कम दो सौ (१८४०) और अन्तर एक कम अर्थात् एक सौ तेरासी (१८३) हैं ॥ ३० ॥ लवण समुद्र में चन्द्र और सूर्यकी वीथियां पृथक पृथक् इनसे दूनी (चन्द्रकी ३० और सूर्य की ३६८) कही गई हैं। जितनी वीथियां हैं उनसे एक कम उनके अन्तर (२९, ३६७) भी जानना चाहिये ॥३१॥ धातकीखण्ड द्वीपमें चन्द्रोंकी वीथियां नब्बे (१५४६=९०) तथा सूर्योंकी वीथियां ग्यारह सौ चार (१८४४६=११०४) हैं ॥३२॥ ना - fun Me - । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001872
Book TitleLokvibhag
Original Sutra AuthorSinhsuri
AuthorBalchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2001
Total Pages312
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Geography
File Size22 MB
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