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१०४] लोकविभागः
[६.१६ रवीन्दुशुऋगुर्वाख्याः कुजाः सौम्यास्तमोदयाः । ऋक्षास्ताराः स्वविष्कम्भादर्धबाहल्यका मताः॥१६ सिंहाकारा हि तौ प्राच्यां त्वपाच्या गजरूपकाः। प्रतीच्यां वृषभाकारा उदीच्यां जटिलाश्वकाः ॥ वहन्ति चाभियोगास्ते षोडशव सहस्रकम् । रवीन्दुभ्यां त्रयः शेषा हीयन्तेऽर्धार्धसंख्यया ॥१८
चं १६००० सू १६०००। ८०००। न ४००० । ता २०००। आचार्यकृतविन्याससमुदो' वाप्यधोमुखः । ज्योतिर्लोकस्वभावोऽयमालोकान्तादिति स्थितः ॥ १९ उत्तरोऽभिजिदृक्षाणां मूलो दक्षिण इष्यते । ऊधिः स्वाति भरणी क्रमान्मध्ये च कृत्तिका ॥ २० सर्वमन्दः शशी गत्या रविः शीघ्रतरस्ततः । रवग्रहास्ततो भानिस्तेभ्यस्ताराश्च शीघ्रकाः ॥ २१ चरतीन्दोरधो राहुररिष्टोऽपि च भास्वतः । षण्मासात् पर्वसंप्राप्तावन्दू तृणुतश्च तौ ॥ २२ त्यक्त्वा मेरुं चरन्त्येकद्वयेक ज्योतिषां गणाः । विहायेन्दुत्रयं शेषाश्चरन्त्येकपथे सदा ॥ २३
।११२१। शशिनौ द्वाविह द्वीपे चत्वारो लवणोदके । परस्मिन् द्वादशैव स्युः कालोदे सप्त षड्गुणाः ॥ २४ पुष्कराधैं पुनश्चन्द्रा हिसप्ततिरितीरिताः । चन्द्राणां मानुषक्षेत्रे द्वात्रिंशच्छतमुच्यते ॥ २५ ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
सूर्य, चन्द्र, शुक्र, गुरु, कुज (मंगल), बुध, और राहु ये ग्रह; नक्षत्र तथा तारे इन सबका बाहल्य अपने विस्तारसे आधा माना गया है ॥ १६॥
उन सूर्य और चन्द्रके विमानोंको पूर्व में सिंहके आकार, दक्षिणमें हाथीके आकार, पश्चिममें बैलके आकार, तथा उत्तरमें जटायुक्त घोड़ेके आकारके सोलह हजार (१६०००) अभियोग्य जातिके देव खींचते हैं । सूर्य और चन्द्रके अतिरिक्त शेष तीन (ग्रह, नक्षत्र, और तारा ) के विमानवाहक देवोंकी संख्या क्रमसे आधी आधी है। (चन्द्र १६०००, सूर्व १६००० ग्रह ८०००, नक्षत्र ४००० तारा २०००) ॥१७-१८ ॥ • • • • • • • • • • • • • • • • •(?) यह ज्योतिर्लोकका स्वभाव लोक पर्यन्त स्थित है ।।१९ ॥
नक्षत्रोंमेंसे उत्तरमें अभिजित् नक्षत्रका, दक्षिणमें मूल नक्षत्रका, ऊपर और नीचे क्रमशः स्वाति और भरणी नक्षत्रोंका तथा मध्यमें कृत्तिका नक्षत्रका संचार माना गया है ॥ २० ॥ गमनमें चन्द्रमा सबसे मन्द है, सूर्य उसकी अपेक्षा शीघ्र गमन करनेवाला है, सूर्यसे शीघ्रतर गतिवाले ग्रह, उनसे नक्षत्र, तथा उनसे भी शीघ्रतर गतिवाले तारा हैं ।। २१ ॥ चन्द्रके नीचे राहुका विमान तथा सूर्यके भी नीचे केतुका विमान संचार करता है । वे दोनों छह मासमें पर्व (क्रमसे पूर्णिमा व अमावस्या ) की प्राप्ति होनेपर चन्द्र और सूर्यको आच्छादित करते हैं ॥२२॥ ज्योतिषियोंके समूह अंकक्रमसे एक, दो, एक और एक (११२१) अर्थात् ग्यारह सौ इक्कीस योजन प्रमाण मेरु पर्वतको छोड़कर संचार करते हैं । सूर्य, चन्द्र और ग्रह इन तीनको छोड़कर शेष नक्षत्र व तारागण सदा एक ही मार्गमें संचार करते हैं ।। २३ ।।
चन्द्रमा यहां जंबू द्वीपमें दो, लवणोदक समुद्रमें चार, आगे धातकीखण्ड द्वीपमें बारह, कालोदक समुद्रमें छहसे गुणित सात अर्थात् ब्यालीस तथा पुष्करार्धमें बहत्तर कहे गये हैं। इस प्रकार मनुष्यक्षेत्र (अढ़ाई द्वीप ) में समस्त चन्द्रोंकी संख्या एक सौ बत्तीस (२+४+१२+
१ व समुद्गो।
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