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लोकविभागः
[५.७८
'नयुतप्रमितायुष्को विलसल्लक्षणोज्ज्वलः । धनुषां षट्छतान्युच्चः प्रोद्यदर्कसमद्युतिः ॥ ७८ तस्य कालेऽतिसंप्रीताः पुत्राशासनदर्शनैः । तुग्भिः सह स्म जीवन्ति दिनानि कतिचित्प्रजाः ॥ ७९ मरुद्देवोऽभवत्कान्तः कुलधृत्तदनन्तरम् । स्वोचितान्तरमुल्लङ्घ्य प्रजानामुत्सवो दृशाम् ॥ ८० शतानि पञ्च पञ्चाग्रां सप्तति च समुच्छ्रितिः । धनूंषि नयुताङ्गायुविवस्वानिव भास्वरः ॥ ८१ तस्य काले प्रजा दीर्घ प्रजाभिः स्वाभिरन्विताः । प्राणिषुस्तन्मुखालोकतदङ्गस्पर्शनोत्सवः ॥ ८२ नौद्रोणीसंक्रमादीनि जलदुर्गेष्वकारयत् । गिरिदुर्गेषु सोपानपद्धतीः सोऽधिरोहणे ॥। ८३ ततः प्रसेनजिज्जज्ञे ३ प्रभविष्णुर्मनुर्महान् । कर्मभूमिस्थितावेवमभ्यर्णायां शनैः शनैः ॥ ८४ * पर्वप्रमितमाम्नातं मनोरस्यायुरञ्जसा । शतानि पञ्च चापानां शतार्ध च तदुच्छ्रितिः ॥ ८५ तदाभूदर्भकोत्पत्तिर्ज रायुपटलावृता । ततस्तत्कर्षणोपायं स प्रजानामुपादिशत् ॥ ८६ तदनन्तरमेवाभून्नाभिः कुलधरः सुधीः । युगादिपुरुष: पूर्वेरुढां धुरमुद्वहन् ॥ ८७ पूर्वकोटिमितं तस्य परमायुस्तनू च्छ्रितिः । शतानि पञ्च चापानां पञ्चवर्गाधिकानि वै ॥ ८८
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कुलकर हुआ ।। ७७ ।। सुन्दर लक्षणोंसे उज्ज्वल एवं उदित होते हुए सूर्यके समान कान्तिवाला वह कुलकर 'नयुत' प्रमाण आयुका धारक और छह सौ (६००) धनुष ऊंचा था ॥ ७८ ॥ उसके समयमें प्रजाजन पुत्रोंके दर्शन एवं आश्वासन से अतिशय प्रीतिको प्राप्त होकर सन्तानके साथ कुछ दिन जीवित रहने लगे थे ॥ ७९ ॥
उसके पश्चात् अपने योग्य मन्वन्तरको लांघकर प्रजाजनोंके नेत्रोंको आनन्दित करनेवाला रमणीय मरुद्देव नामका बारहवां कुलकर उत्पन्न हुआ ||८०|| यह कुलकर सूर्यके समान तेजस्वी था । उसके शरीरकी ऊंचाई पांच सौ पचत्तर (५७५) धनुष और आयु ' नयुतांग' प्रमाण थी ॥ ८१ ॥ उसके समय में प्रजाजन अपनी सन्तानके साथ बहुत समय तक स्थित रहकर उसके मुखावलोकन और अंगस्पर्शरूप उत्सवोंसे अतिशय प्रीतिको प्राप्त होते थे ॥८२॥ उसने जलमय दुर्गम स्थानों (नदी समुद्र आदि) में जानेके लिये नाव, द्रोणी ( छोटी नाव) एवं पुल आदिका तथा पर्वतादिरूप दुर्गम स्थानोंके ऊपर चढ़नेके लिये सीढ़ियोंकी प्रणालीका निर्माण कराया ॥८३॥
तत्पश्चात् धीरे धीरे कर्मभूमिको स्थितिके निकट होनेपर महान् प्रभावशाली प्रसेनजित् नामका तेरहवां कुलकर उत्पन्न हुआ ॥ ८४ ॥ इस कुलकरकी आयु निश्चयतः पर्व प्रमाण और शरीरकी ऊंचाई पांच सौ पचास (५५० ) धनुष मात्र थी ॥ ८५ ॥ सन्तानकी उत्पत्ति जरायुपटलसे वेष्टित होने लगी थी, इसलिये उसने प्रजाजनोंको उक्त जरायुपटलके छेदनेका उपाय निर्दिष्ट किया था ॥ ८६ ॥
उस समय
उसके अनन्तर ही युगादि पुरुषों ( पूर्व कुलकरों) के द्वारा धारण किये गये भारको धारण करनेवाला बुद्धिमान् नाभिराय नामका चौदहवां कुलकर हुआ ॥ ८७॥ उसकी उत्कृष्ट आयु पूर्वकोटि प्रमाण तथा शरीरकी ऊंचाई पांच के वर्ग (२५) से अधिक पांच सौ ( ५२५ )
१ ब नवुत ं । २ व नवुतं । ३ ब 'जिदजज्ञे । ४ ५ पूर्व ।
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