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८८] लोकविभागः
[५.३९सदाप्यधिनभोभागं' भ्राम्यतोऽभू महाद्युती। न वस्ताभ्यां भयं किंचिदतो मा भैष्ट भद्रकाः॥१३ इति तद्वचनात्तेषां प्रत्याश्वासो महानभूत् । मनौ याते दिवं तस्मिन् काले गलति च क्रमात् ॥ ३९ मन्वन्तरमसंख्येयवर्षकोटीयंतीत्य च । सन्मतिः सन्मतिर्नाम्ना द्वितीयोऽभून्मनुस्तदा ॥ ४० तस्यायुरममप्रख्यमासीत्संख्येयहायनम् । सहस्रं त्रिशतीयुक्तमुत्सेधो धनुषां मतः ॥ ४१ नमोऽङ्गणमयापूर्य तारकाः प्रचकाशिरे। नात्यन्धकारकलुषां वेलां प्राप्य तमीमुखे ॥ ४२ अकस्मात्तारका दृष्ट्वा संभ्रान्तान् भोगभूभुवः । भोतिविचलयामास प्राणिहत्येव योगिनः ॥ ४३ स सन्मतिरनुध्याय क्षणं प्रावोचतार्यकान् । नोत्पातः कोऽप्ययं भद्रास्तन्मागात् भियो वशम् ॥४४ ज्योतिश्चक्रमिदं शश्वद् व्योममार्गे कृतस्थिति । स्पष्टतामधुनायातं ज्योतिरङ्गप्रभाक्षयात् ॥४५ ज्योतिर्ज्ञानस्य बीजानि सोऽन्ववोचद्विदांवरः । अथ तद्वचनादार्या जाता सपदि निर्भयाः ॥ ४६ ततोऽन्तरमसंख्येयाः ३कोटीरुल्लङघ्य वत्सरान् । तृतीयो मनुरप्रासीत् क्षेमंकरसमाह्वयः ॥ ४७ अटटप्रमितं तस्य बभूवायुमहौजसः। देहोत्सेधश्च चापानाममुष्यासोच्छताष्टकम् ॥ ४८
प्रभाके विनष्ट हो जानेसे आकाशमें दिखने लगे हैं ॥ १२॥ अतिशय तेजके धारक वे दोनों सदा ही आकाशमें भ्रमण करते हैं। उनसे आप लोगोंको कुछ भी भय नहीं होना चाहिये । अत एव हे भद्र पुरुषो! आप लोग इनसे भयभीत न हो ॥ १३॥
प्रतिश्रुति कुलकरके इन वचनोंसे उन भोगभूमिज प्रजाजनोंको बड़ी सान्त्वना मिली। इस कुलकरके स्वर्गस्थ होनेके पश्चात् क्रमसे कालके व्यतीत होनेपर असंख्यात करोड़ वर्षोंको विताकर उत्तम बुद्धिका धारक सन्मति नामका दूसरा कुलकर हुआ ।। ३९-४० ।। उसकी आयु अममके बराबर असंख्यात वर्ष और शरीरकी ऊंचाई एक हजार तीन सौ (१३००) धनुष प्रमाण थी ॥४१॥ एक दिन रात्रिमें जब वेला ( काल ) सघन अन्धकारसे मलिन नहीं हुई थी तब तारागण आकाशरूपी आंगनको पूर्ण करके प्रकाशित हुए ॥४२॥ उस समय अकस्मात् ताराओंको देखकर उत्पन्न हुए भयने उन भोगभूमिजोंको इस प्रकार विचलित कर दिया जैसे कि प्राणिहिंसा योगियोंको विचलित कर देती है ॥ ४३ ॥ तब सन्मति कुलकरने क्षणभर विचार कर उन आर्योसे कहा कि हे भद्र पुरुषो! यह कोई उपद्रव नहीं प्राप्त हुआ है। इसलिये आप लोग उनसे भयको प्राप्त न हों ॥ ४४ ।। निरन्तर आकाशमार्गमें अवस्थित रहनेवाला यह ज्योतिर्मण्डल इस समय ज्योति रंग जातिके कल्पवृक्षोंकी प्रभाके क्षीण हो जानेसे स्पष्टतया दृष्टिगोचर होने लगा है ॥ ४५ ॥ विद्वानोंमें श्रेष्ठ उस सन्मति कुलकरने उन्हें ज्योतिषी देवों विषयक ज्ञानके कुछ बीज भी बतलाये। उसके इस कथनसे आयंगण शीघ्र ही भयसे निर्मुक्त हो गये॥४६।।
तत्पश्चात् असंख्यात करोड़ वर्ष मात्र अन्तरको विताकर यहां क्षेमंकर नामका तीसरा कुलकर हुआ ॥ ४७ ।। उस महान् तेजस्वी कुलकरकी आयु अटट प्रमाण और शरीरकी ऊंचाई
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