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८४] लोकविभागः
[५.१०आदावपि तृतीयायाः प्रियङगुश्यामवर्णकाः । चतुर्थभक्तेनाहारमेकां गन्यूतिमुच्छिताः ॥ १० षट्पञ्चाशच्छते द्वे च तथाष्टाविंशतिः शतम् । चतुःषष्ठिः क्रमात्तासु नराणां ष [प] ष्ठकण्डका:११
२५६ । १२८ । ६४। जीवितं त्रीणि पल्यानि द्वे चैकं च क्रमागतम् । मानुषा मिथुनान्येव कल्पवृक्षोपजीविनः ।। १२ मृदङ्गभृङ्गरत्नाङ्गाः पानभोजनपुष्पदाः । ज्योतिरालयवस्त्राङ्गाः कल्पागैर्दशधा' द्रुमाः ।। १३
उक्तं च [ति. प. ४-३४२, ८२९]पाणंगतूरिअंगा भूसणवत्थंग भोयणंगा य । आलयदीवियभायणमालातेअंगआदि कप्पतरू ॥१ पुष्करं पटहं भेरी दुन्दुभि पणवादि च । वीणावंशमृदङ्गांश्च दध[द]ते तूर्य पादपाः ॥ १४ भृङ्गारकलशस्थालीस्थालवृत्तकशुक्तिकाः३ । कुचाकरकपात्राणि ददते भृङ्गसंज्ञकाः ॥ १५ नराणां षोडशविधं स्त्रीणामपि चतुर्दश । विविधमाभरणं नित्यं रत्नाङगा ददते" शुभम् ॥ १६ वीर्यसाररसोपेतं सुगन्धिप्रीतिपूरकम् । द्वात्रिंशभेदकं पानं सूयन्ते पानपादपाः ॥ १७ षोडशान्नविधीन् मृष्टानुं नो]दनस्य च षोडश । चतुर्दशविधान् सूपान् स्वाद्यं त्वष्टोत्तरं शतम् ।।
होती है । वे षष्ठ भक्तमें अर्थात् दो दिनके अन्तरसे आहार ग्रहण करते हैं ॥९॥ तीसरे कालके प्रारम्भमें प्रियंगु पुष्पके समान प्रभावाले मनुष्य एक कोस प्रमाण शरीरकी ऊंचाईसे सहित होते हुए चतुर्थ भक्तसे अर्थात् एक दिनके अन्तरसे आहार करते हैं ।। १० ।।
उन तीन कालोंमें मनुष्योंकी पृष्ठास्थियां क्रमसे दो सौ छप्पन (२५६), एक सौ अट्ठाईस (१२८) और चौंसठ (६४) होती हैं ।। ११ ।। इन कालोंमें मनुष्योंकी आयुका प्रमाण यथाक्रमसे तीन पल्य, दो पल्य और एक पल्य होता है। उक्त कालोंमें मनुष्य युगलरूपसे ही उत्पन्न होकर कल्पवृक्षोंसे आजीविका करते हैं अर्थात् उन्हें समस्त भोगोपभोगकी सामग्री कल्पवृक्षोंसे ही प्राप्त होती है ॥ १२ ॥ इन तीन कालोंमें कल्पवृक्षोंके मृदंगांग (तूर्यांग), भृगांग (भाजनांग), रत्नांग (भूषणांग), पानांग (मद्यांग), भोजनांग, पुष्पांग (मालांग), ज्योतिरंग, आलयांग और वस्त्रांग ये दस प्रकारके वृक्ष होते हैं ।। १३ ।। कहा भी है--
__ पानांग, तूर्यांग, भूषणांग, वस्त्रांग, भोजनांग, आलयांग, दीपांग, भाजनांग, मालांग और ज्योतिरंग; इस तरह वे कल्पवृक्ष दस प्रकारके हैं ।। १ ।।
तूर्यांग कल्पवृक्ष पुष्कर, पटह, भेरी, दुंदुभि, पणव (ढोल) आदि, वीणा, बांसुरी और मृदंग वाद्योंको देते हैं ।।१४।। भुंग नासक कल्पवृक्ष भुंगार, कलश, थाली, थाल, वृत्तक, शुक्तिक, कुच और करक (जलपात्र); इन पात्रोंको देते हैं ॥ १५॥ रत्नांग कल्पवृक्ष पुरुषोंके सोलह प्रकारके और स्त्रियोंके चौदह प्रकारके उत्तम विविध आभरणोंको नित्य ही देते हैं ।। १६ ।। पानांग कल्पवृक्ष वीर्यवर्धक श्रेष्ट रससे संयुक्त, सुगन्धित और प्रीतिको पूर्ण करनेवाले बत्तीस प्रकारके पानको उत्पन्न करते हैं ।। १७ ।। भोजनांग कल्पवृक्ष सोलह प्रकारके स्वादिष्ट अन्न
१५ कल्पांग । २ आ प अंगमादि । ३ आ पब शुकिकाः । ४ प पत्राणि । ५ ब दधते ।
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