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-४.८६] चतुर्थो विभागः
[८१ अमोघं स्वस्तिक कूटं मन्दरं च तृतीयकम् । ततो हैमवतं कूटं राज्यं राज्योत्तमं ततः ॥ ७६ चन्द्रं सुदर्शनं चेति अपरस्यां तु लक्षयेत् । रुचकस्य गिरीन्द्रस्य मध्ये कूटानि तेष्विमाः ॥ ७७ इलादेवी सुरादेवी पृथिवी पद्मवत्यपि । एकनासा नवमिका सीता भद्रेति चाष्टमी ॥ ७८ विजयं वैजयन्तं च जयन्तमपराजितम् । कुण्डलं रुचकं चैव रत्नवत्सर्वरत्नकम् ॥ ७९ अलंबूषा मिश्रकेशी तृतीया पुण्डरीकिणी। वारुण्याशा च सत्या च ह्रीः श्रीश्चैतेषु देवताः ॥ ८० पूर्वा गृहीत्वा भृङगारान् दक्षिणा दर्पणान् परान् । अपरा' आतपत्राणि चामराण्युत्तमाङ्गना॥ दिशाकुमार्यो द्वात्रिंशत्सादराः कृतमण्डनाः । जिनानां जन्मकालेषु सेवार्थमुपयान्ति ताः ॥ ८२ पूर्वे तु विमलं कूटं नित्यालोकं स्वयंप्रभम् । नित्योद्योतं तदन्तः स्युस्तुल्यानि गृहमानकैः ॥ ८३ कनका विमले कूटे दक्षिणे च शतदा । ततः कनकचित्रा च सौदामिन्युत्तरे स्थिताः ॥ ८४ अर्हतां जन्मकालेषु दिशा उद्द्योतयन्ति ताः । श्रीवत्स्वपरिवाराद्यैः सर्वा एता इति स्मृताः ॥८५ वैडूर्य रुचकं कूट मणिकूटं च पश्चिमम् । राज्योत्तमं तदन्तः स्युः पूर्वमानसमानि च ॥ ८६ ॥
अमोघ, स्वस्तिक, तीसरा मन्दर, हैमवत, राज्य, राज्योत्तम, चन्द्र और सुदर्शन; ये आठ कूट रुचक पर्वतके मध्यमें पश्चिम दिशामें स्थित जानना चाहिये । उनके ऊपर ये दिक्कुमारिकायें निवास करती हैं- इलादेवी, सुरादेवी, पृथिवी, पद्मवती, एकनासा, नवमिका, सीता और आठवीं भद्रा ॥ ७६-७८ ॥
विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित, कुण्डल, रूचक, रत्नवान् और सर्वरत्न; ये आठ कूट उसके ऊपर उत्तर दिशा में स्थित हैं ।। ७९ ॥ इनके ऊपर ये आठ दिक्कुमारी देवियां रहती हैं- अलंबूसा, मिश्रकेशी, तृतीय पुण्डरीकिणी, वारुणी, आशा, सत्या, ह्री और श्री ।। ८० ॥
इनमेंसे पूर्वदिशामें स्थित उक्त आठ दिक्कुमारिकायें झारियोंको, दक्षिणदिशागत आठ देवियां उत्तम दर्पणोंको, पश्चिमदिशावासिनी छत्रोंको, तथा उत्तरदिशाकी आठ दिक्कन्यायें चामरोंको ग्रहण कर; इस प्रकार वे सुसज्जित बत्तीस (३२) दिक्कुमारिकायें तीर्थंकरोंके जन्म कल्याणकोंमें सविनय सेवा करने के लिये उपस्थित होती हैं ।। ८१-८२ ॥
उक्त कूटोंके अभ्यन्तर भाग में पूर्व [ आदि दिशाओंमें क्रमसे] विमल कूट, नित्यालोक, स्वयंप्रभ और नित्योद्योत ये चार कूट स्थित हैं । वे सब गृहमानोंसे समान हैं ॥ ८३ ॥ इनमेंसे विमल कूटके ऊपर कनका, दक्षिण कूटके ऊपर शतह्रदा, पश्चिम कूटके ऊपर कनकचित्रा और उत्तर कूटके ऊपर सौदामिनी देवियां स्थित हैं ॥ ८४ ।। वे देवियां तीर्थंकरोंके जन्मकालोंमें दिशाओंको उद्योतित करती हैं । ये सब देवियां परिवार आदिमें श्रीदेवीके समान मानी गई हैं ।। ८५ ॥
उनके भी अभ्यन्तर भागमें वैडूर्य, रुचककूट, मणिकूट और अन्तिम राज्योत्तम ये चार
१. आपरा । २ ["त्तराङगना) को.११
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