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८०] लोकविभागः
[४.६६तदन्तः सिद्धकूटानि दिक्षु चत्वारि मानतः । समानि नैषधस्तत्र चत्वारश्च जिनालयाः ॥ ६६
पाठान्तरम् । तस्य दिक्षु च चत्वारि विदिक्षु च महागिरेः । अष्टावायतनान्याहुः सममानानि नैषधेः ॥ ६७
उक्तं च [ति. प. ५,१२८] - तगिरिवरस्स होंति उ' दिसिविदिसासु जिणिदकूडाणि । पत्तेक्कं एक्केक्कं केई एवं परूवेंति ॥ द्वीपस्त्रयोदशो नाम्ना रुचकस्तस्य मध्यम: । अद्रिश्च वलयाकारो रुचकस्तापनीयकः ।। ६८ महाजनगिरेस्तुल्यो विष्कम्भेणोच्छ्येण च । तस्य मूर्धनि पूर्वस्यां कूटाश्चाष्टाविति स्मृताः ॥६९ कनकं काञ्चनं कूटं तपनं स्वतिक दिशः । सुभद्रमञ्जनं मूलं चाजनाद्यं च वज्रकम् ।। ७० उछितानि सहस्रार्धं मूले तावत्प्रथूनि च । तदर्धमग्रे रुन्द्राणि गौतमस्येव चालयाः ॥ ७१ विजयाद्याश्चतस्रश्च नन्दा नन्दवतीति च । नन्दोत्तरा नन्दिषेणा तेष्वष्टौ दिक्सुरस्त्रियः ॥ ७२ स्फटिक रजतं चैव कुमुदं नलिनं पुनः । पद्मं च शशिसंशं च ततो वैश्रवणाख्यकम् ॥ ७३ वैडूर्यमष्टकं कूटं पूर्वकूटसमानि च । दक्षिणस्यामथैतानि दिक्कुमार्योऽत्र च स्थिताः ।। ७४ इच्छा नाम्ना समाहारा सुप्रतिज्ञा यशोधरा । लक्ष्मी शेषवती चान्या चित्रगुप्ता वसुंधरा ।। ७५
उनके मध्य में दिशाओंमें चार सिद्धकूट हैं जो प्रमाणमें निषध पर्वतके ऊपर स्थित सिद्धकूटके समान हैं। उनके ऊपर चार जिनालय हैं ॥ ६६ ।। पाठान्तर।
उस महापर्वतकी दिशाओंमें चार और विदिशाओंमें चार, इस प्रकार आठ जिनायतन हैं जो प्रमाणमें निषधपर्वतस्थ जिनभवनके समान हैं ।। ६७ ।। कहा भी है -
उस गिरीन्द्र की दिशाओं और विदिशाओंमें प्रत्येकमें एक एक जिनेन्द्रकट है, ऐसा कितने ही आचार्य निरूपण करते हैं ॥ ४ ॥
- तेरहवां द्वीप रुचक नामका है। उसके मध्य में तपाये हुये सुवर्ण के समान कान्तिवाला वलयाकार रुचक नामका पर्वत स्थित है ॥ ६८ ॥ वह विस्तार और ऊंचाईमें महान् अंजनगिरिके समान (८४००० यो.) है। उसकी शिखरके ऊपर पूर्व दिशामें ये आठ कूट माने गये हैंकनक, कांचन, तपन, स्वस्तिक, सुभद्र, अंजन, अंजनमूल और वज्र ।।६९-७०॥ ये कूट सहस्रके आधे अर्थात् पांच सौ (५००) योजन ऊंचे और मूलमें उतने (५०० यो.) ही विस्तृत हैं। शिखरपर उनका विस्तार उससे आधा (२५०) है । इनके ऊपर जो प्रासाद स्थित हैं वे गौतम देवके प्रासादोंके समान हैं ।। ७१ ॥ इन कूटोंके ऊपर उक्त प्रासादों में विजया आदि (वैजयन्ती, जयन्ती और अपराजिता) चार तथा नन्दा, नन्दवती, नन्दोत्तरा और नन्दिषणा ये आठ दिक्कुमारी देवियां रहती हैं ।। ७२ ।।
स्फटिक, रजत, कुमुद, नलिन, पद्म, शशी नामक (चन्द्र), वैश्रवण और वैडूर्य ये आठ कूट पूर्वदिशागत कूटोंके ही समान होकर दक्षिण दिशामें स्थित हैं। इन कूटोंके ऊपर निम्न दिक्कुमारी देवियां स्थित हैं- इच्छा, समाहार, सुप्रतिज्ञा, यशोधरा, लक्ष्मी, शेषवती, चित्रगुप्ता और वसुंधरा ।। ७३-७५ ।।
१ ति. प. 'उ' नास्ति
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