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________________ [ चतुर्थी विभागः ] * जम्बूद्वीपः समुद्रश्च 'लावणस्तस्य बाहिरः । द्वीपश्च धातकीखण्डः २ कालोदः पुष्करस्तथा ।। १ पुष्करं परिवृत्यास्थात् ३ पुष्करोदस्तु सागरः । वारुणीवरनामा च द्वीपस्तन्नामसागरः ॥ २ ततः क्षीरवरो द्वीपः सागरश्च तदाह्वयः । ततो घृतवरो द्वीपो घृतोदश्चापि सागरः || ३ ततः क्षौद्रवरो द्वीपस्तन्नामैव च सागरः । नन्दीश्वरस्ततो द्वीपः सागरश्च तदाह्वयः ॥ ४ अरुण नामतो द्वीपोsरुणाभासवरश्च सः । कुण्डलो नामतो द्वीपस्ततः शङ्खवरोऽपि च ।। ५ रुचकोऽतः परो द्वीपो भुजगोऽपि च नामतः । द्वीपः कुशवरो नाम्ना ततः क्रौञ्चवरोऽपि च ।। ६ जम्बूद्वीपादयो द्वीपा नामतः षोडशोदिताः । द्वीपनामान एव स्युः पुष्करोदादिसागराः ॥ ७ असंख्येयस्ततोऽतीत्य द्वीपो नाम्ना मनः शिलः । हरितालश्च सिन्दूर : ६ श्यामकोऽञ्जन एव च ॥८ aturesगुलिकाच तस्माद् रूप्यवरः परः । सुवर्णवर इत्यन्यस्ततो वज्रवरोऽपि च ।। ९ वैडूर्यवरसंज्ञश्च ततो नागवरोऽपि च । ततो भूतवरो द्वीपस्ततो यक्षवरः परः ॥ १० ततो देववरो द्वीपस्ततोऽहोन्द्रवरः परः । स्वयंभूरमणश्चान्त्यः सागरास्तत्सनामकाः । ॥ ११ षोडशै बहिद्वपा भाषिता नामभिजिनः । असंख्येयाश्च मध्यस्थाः शुभाख्या द्वीपसागराः ।। १२ सब द्वीपों के मध्य में जंबूद्वीप है और उसके बाह्य भागमें लवण समुद्र है । उसके आगे धातकीखण्ड द्वीप व कालोदक समुद्र है । तत्पश्चात् पुष्करद्वीप और उसके आगे पुष्करद्वीपको घेरकर पुष्करोद समुद्र स्थित है। इसके आगे वारुणीवर द्वीप और उसीके नामका समुद्र, क्षीरवर द्वीप और उसीके नामका समुद्र, उसके आगे घृतवर द्वीप, घृतवर समुद्र, क्षौद्रवर द्वीप, क्षौद्रवर समुद्र, नन्दीश्वर द्वीप, नन्दीश्वर समुद्र, इसके आगे अपने [ अपने नामवाले समुद्रोंसे संयुक्त ] अरुण द्वीप, अरुणाभासवर द्वीप, कुण्डल द्वीप, शंखवर द्वीप, रुचक द्वीप, भुजग द्वीप, कुशवर द्वीप और क्रौंचवर द्वीप; इस प्रकार जंबूद्वीप आदि नामोंसे प्रसिद्ध ये सोलह (१६) द्वीप कहे गये हैं । पुष्करोद समुद्रको आदि लेकर आगे के सब समुद्र अपने अपने द्वीप जैसे नामवाले हैं ॥ १-७॥ इसके आगे असंख्यात द्वीप समुद्रोंको लांघकर मनःशिल नामक द्वीप स्थित है । उसके आगे क्रमशः हरिताल, सिन्दूर, श्यामक, अंजन, हिंगुलिक, रूप्यवर, सुवर्णवर, वज्रवर, वैडूर्यवर, नागवर, भूतवर यक्षवर, देववर, अहीन्द्रवर और अन्तिम स्वयम्भूरमण द्वीप; इस प्रकार ये सोलह (१६) द्वीप अपने अपने नामवाले सोलह समुद्रोंसे संयुक्त होते हुए बाह्य भागमें स्थित हैं । जिन भगवान् ने इन्हें इन नामोंसे कहा है । क्रौंचवर समुद्र और मनःशिल द्वीपके मध्य में स्थित जो असंख्यात द्वीप समुद्र हैं वे भी उत्तम नामोंवाले हैं ।। ८-१२ ।। १ प लवणा । २ आ ब षण्ड: । ३ प वृत्यास्स्यात् । ४ आ व तदाह्वकः । ५ प सागरः । ६ आ प सिंधूरः । ७ आ प वरौ । ८ प स्ततनामकाः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001872
Book TitleLokvibhag
Original Sutra AuthorSinhsuri
AuthorBalchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2001
Total Pages312
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Geography
File Size22 MB
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