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-३.७७ ]
तृतीयो विभाग:
विविधरत्नमयान तिभासुरान् सुरसहस्रनुतचितरक्षितान् । जिनगृहान् द्विकहीनचतुःशतानभिनमामि' नरक्षितिसंश्रितान् ॥ ७७
इति लोकविभागे मानुषक्षेत्रविभागो नाम तृतीयं प्रकरणं समाप्तम् ॥ ३॥
विस्तारादिमें निषेध पर्वत के ऊपर स्थित जिनभवनों के समान हैं । इसी प्रकारके जिनभवन इष्वाकार पर्वतोंके ऊपर भी स्थित हैं ।। ७६ ॥
मध्य लोकमें जो अनेक प्रकारके रत्नमय जिनभवन स्थित हैं वे अतिशय देदीप्यमान होते हुए हजारों देवोंके द्वारा नमस्कृत, पूजित एवं रक्षित हैं । उन सबकी संख्या दो कम चार सौ ( ३९८ ) है । उन सबको मैं नमस्कार करता हूँ ।। ७७ ।।
इस प्रकार लोकविभाग में मानुषक्षेत्र विभाग नामक तृतीय प्रकरण समाप्त हुआ ॥ ३॥
१ ब शतारभिनमामि
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