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७०] लोकविभागः
[ ३.६८मूले सहस्र द्वाविंशं चतुर्विशं चतुःशतम् । अग्रे मध्ये च विस्तारस्त[द्द्वयार्धमिति' स्मृतः ॥ ६८
।७२३ । त्रीण्येक सप्तषत्रीणि द्वे चत्वार्यककं भवेत् । साधिकं च परिक्षेपो मानुषोत्तरपर्वते ॥ ६९
। १४२३६७१३ । सहस्रं त्रिशतं त्रिंशद्दण्डाः स्युहस्त एककः । दशाङगुलानि पञ्चैव जवाश्चाधिकमानकम् ।। ७०
।ह १ अं१० ज ५। अर्धयोजनमुद्विद्धा पादगोस्तविस्तृता । वेदिका शिखरे तस्य चतुर्दशगुहश्च सः ॥ ७१
।दं २५००। चतुर्दश महानद्यो बाह्या गत्वार्धपुष्करे । गुहासु पुष्करोदं च गताः कालोदकं पराः ।। ७२ त्रीणि त्रीणि तु कूटानि प्रत्येक दिक्चतुष्टये । पूर्वयोविदिशोश्चैव तान्यष्टादश पर्वते ।। ७३ सर्वेषु तेषु कूटेषु गरुडेन्द्रपुराणि तु । गिरिकन्याकुमाराश्च वसन्ति गरुडान्वयाः ।। ७४ षडग्नीशानकूटेषु सुपर्णकुलसंभवाः । कुमाराः शेषकूटेषु दिक्कुमार्यो वसन्ति च ॥ ७५ तस्य दिक्ष्वपि चत्वारि यहदायतनानि हि । नैषधैः सममानानि इष्वाकारगिरिष्वपि ।। ७६
पर्वतका विस्तार मूलमें एक हजार बाईस (१०२२) योजन, ऊपर शिखरपर चार सौ चौबीस (४२४) योजन और मध्यमें उन दोनोंके अर्धभाग अर्थात् सात सौ तेईस (१०२२+४२४ = . ७२३) योजन प्रमाण माना गया है ।। ६८ ॥ मानुषोत्तर पर्वतकी परिधि अंकक्रमसे तीन, एक, सात, छह, तीन, दो, चार और एक (१४२३६७१३) इतने योजनसे कुछ अधिक है ॥ ६९ ॥ परिधिकी इस अधिकताका प्रमाण एक हजार तीन सौ तीस धनुष, एक हाथ, दस अंगुल और पांच जौ है- दण्ड १३३०, हाथ १, अंगुल १०, जौ ५॥७०॥ इस पर्वतके शिखरपर जो वेदिका स्थित है वह आधा योजन ऊंची और पाव कोससे सहित एक कोस ( दण्ड २५००) विस्तृत है । यह पर्वत चौदह गुफाओंसे संयुक्त है ॥ ७१ ।। पुष्करार्ध द्वीपमें स्थित बाह्य चौदह नदियाँ इन गुफाओंमेंसे जाकर पुष्करोद समुद्रको प्राप्त हुई हैं और शेष चौदह नदियां कालोदक समुद्रको प्राप्त हुई हैं ।। ७२ ॥
इस पर्वतके ऊपर चारों दिशाओंमेंसे प्रत्येक दिशामें तीन तीन तथा पूर्व दो विदिशाओं ( ईशान व आग्नेय ) में भी तीन तीन कूट स्थित हैं । इस प्रकार उसके ऊपर सब अठारह (१८) कूट स्थित हैं ।। ७३ ॥ उन सब कूटोंके ऊपर गरुडेन्द्र के नगर हैं जिनमें गरुडवंशीय गिरिकन्यायें और गिरिकुमार रहते हैं ॥७४।। उनमें से अग्नि और ईशान कोणके कूटोंपर सुपर्ण (गरुड) कुलमें उत्पन्न हुए कुमार (सुपर्णकुमार) तथा शेष कूटोंके ऊपर दिक्कुमारियां रहती हैं ।। ७५ ।। उक्त पर्वतकी चारों दिशाओंमें चार अर्हदायतन (जिनभवन) स्थित हैं जो
१ व तद्वयोर्धमिति । २५ गरुणेन्द्र' । ३ आ प चत्वारिहर्यदा।
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