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[ तृतीयो विभागः ] नाम्नान्यो धातकीखण्डो द्वितीयो द्वीप उच्यते । मेरोः पूर्वपरावत्र द्वौ मेरू परिकोतितौ ॥ १ इष्वाकारौ' च शैलौ द्वौ मेरोरुत्तरदक्षिणौ । सहस्रं विस्तृतावेतौ द्वीपव्याससमायतौ ॥२ अवगाढोच्छ्याभ्यां च निषधेन समौ मतौ । सर्वे वर्षधराश्चात्र स्वः स्वर्गाधोच्छयैः समाः ॥३ क्षेत्रस्याभिमुखं क्षेत्रं शैलानामपि चाद्रयः । इत्वाकारास्तु चत्वारो भरतरावतान्तरे ॥४ हिमवत्प्रभृतीनां च पूर्वो द्विगुण इष्यते । द्वादशानामपि व्यासस्तथा पुष्करसंज्ञके ।।५ द्विचतुष्कमथाष्टौ च अष्टौ सप्त च रूपकम् । धातकोखण्डलानां व्यासः५ संक्षेप इष्यते ॥६
।१७८८४२।
दूसरा द्वीप नामसे धातकीखण्ड कहा जाता है। यहां मेरु ( सुदर्शन ) के पूर्व और पश्चिममें दो मेरु कहे गये हैं ।। १ ॥ यहांपर मेरुके उत्तर और दक्षिणमें दो इष्वाकार पर्वत स्थित हैं। ये एक हजार योजन विस्तृत और द्वीपके विस्तारके बराबर (४ लाख यो.) आयत हैं ॥ २ ॥ ये दोनों इष्वाकार पर्वत अवगाढ़ और ऊंचाईमें निषध पर्वतके समान माने गये हैं। यहांपर सब पर्वत अपने अपने अवगाढ और ऊंचाई में जंबूद्वीपस्थ पर्वतोंके समान हैं ॥ ३ ।। धातकीखण्ड द्वीपमें क्षेत्रके अभिमुख ( सामने ) क्षेत्र और पर्वतोंके अभिमुख पर्वत स्थित हैं । किन्तु चार ( दो धातकीखण्ड और दो पुष्करार्ध द्वीपके ) इष्वाकार पर्वत भरत और ऐरावत क्षेत्रोंके अन्तरमें स्थित हैं ॥ ४॥ हिमवान् आदिक बारह कुलपर्वतोंका विस्तार पूर्व (जंबूद्वीपस्थ हिमवान् आदि) से दूना माना जाता है। उसी प्रकार पुष्करार्ध नामक द्वीपमें भी इन पर्वतोंका विस्तार जंबूद्वीपकी अपेक्षा दूना है ॥ ५ ॥ धातकीखण्डमें स्थित पर्वतोंका विस्तार संक्षेपमें अंकक्रमसे दो, चार, आठ, आठ. सात और एक (१७८८४२) अर्थात् एक लाख अठत्तर हजार आठ सौ व्यालीस यो. माना जाता है ।। ६ ।।
विशेषार्थ --- जंबूद्वीपमें उपर्युक्त हिमवान् आदि पर्वतोंका विस्तार क्रमसे इस प्रकार है-हिम. १०५२१३ +- म.हि. ४२१०१९- निषध १६८४२३६+ नील १६८४२३३ + रुक्मि ४२१०१९ +शिखरी १०५२१२ = ४४२१०१३ यो.। अब चूंकि धातकीखण्ड में इन पर्वतोंका विस्तार जंबूद्वीपकी अपेक्षा दूना दूना है, अतएव उसे दूना करनेसे इतना होता है - ४४२१०१९ ४२ = ८८४२११६ यो. । इसके अतिरिक्त धातकीखण्डमें ये पर्वत २-२ हैं, तथा वहां १०००
१५ ईष्वाकारौ । २ प ईष्वा । ३ आ प व्यासः तथा। ४ व सप्तक । ५ आ प व्यास ।
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