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________________ -२.५२] द्वितीयो विभागः [५९ द्वीपार्णवा ये लवणोदकाद्या एकैकशस्तु द्विगुणाः क्रमेण । पूर्व परिक्षिप्य समन्ततोऽपि स्थिताः समानाह्वयमण्डलस्ते ।। ५२ ।। इति लोकविमागे लवणसमुद्रविभागो' नाम द्वितीयं प्रकरणम् ॥२॥ विशेषार्थ-- जंबूद्वीपका जितना क्षेत्रफल है उसके बराबर प्रमाणसे विवक्षित द्वीप अथवा समुद्रके कितने खण्ड हो सकते हैं, इसका परिज्ञान कराने के लिये प्रकृत करणसूत्र प्राप्त हुआ है। उसका अभिप्राय यह है कि विवक्षित द्वीप या समुद्रकी बाह्य सूचीका जो प्रमाण है उसका वर्ग कीजिये और फिर उसमेंसे उसीकी अभ्यन्तर सूचीके वर्गको घटा दीजिये। इस प्रकारसे जो शेष रहे उसमें १००००० के वर्गका भाग देनेपर प्राप्त राशि प्रमाण विवक्षित द्वीप या समुद्रके जंबूद्वीपके बराबर खण्ड होते हैं । यथा --- लवण समुद्रकी बाह्य सूची ५००००० यो. और अभ्यन्तर सूची १००००० यो. प्रमाण है, अतः (५०००००२ - १०००००२) १०००००२ = २४; इस प्रकार जंबूद्वीके प्रमाणसे लवणसमुद्रके २४ खण्ड प्राप्त होते हैं । धा.द्वीप (१३०००००२ - ५०००००२) १००००० = १४४ खण्ड । कालोद ( २९०००००२ - १३०००००२) १०००००= ६७२ । पुष्कर द्वीप (६१०००००२ - २९०००००२): १०००००२= २८८० खण्ड । लवणोदक समुद्रको आदि लेकर जो द्वीप और समुद्र हैं उनमेंसे प्रत्येक क्रमसे पूर्व पूर्वकी अपेक्षा दूने दूने विस्तारवाले हैं । वे पूर्वके द्वीप अथवा समुद्रको चारों ओरसे घेरकर समान संज्ञावाले मण्डलोंसे स्थित हैं ।। ५२ ।। इस प्रकार लोकविभागमें लवणसमुद्रविभाग नामक द्वितीय प्रकरण समाप्त हुआ॥२॥ १बलवणार्णवविभागो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001872
Book TitleLokvibhag
Original Sutra AuthorSinhsuri
AuthorBalchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2001
Total Pages312
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Geography
File Size22 MB
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