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-२.५० ] द्वितीयो विभागः
[५७ सिंहस्ससाणहयरिउवराहसद्लघूयकपिवदणा । सक्कुलिकणेक्कोरुगपहुदीणं अंतरेसु ते कमसो।।
मच्छमुहा कालमुहा हिमगिरिपणिधीए' पुवपच्छिमदो।
मेसमुहगोमुहक्खा दक्षिणवेअड्ढपणिधोए' ॥ १६॥ पुवावरेण सिहरिप्पणिधीए' मेघविज्जुमुहणामा । आदसणहत्थिनुहा उत्त रवेअड्ढपणिधीए' १७ मिथुनोत्पत्तिकास्ते च नववत्वारिंशता दिनैः। नवयौवनसंपन्ना द्विसहस्रधनुःप्रमाः ॥ ४५
1४९।
शरारततोऽत्युद्घा भूमिरेकोरुकाशनम् । गुहालयाश्च ते सर्वे पल्यायुष इति स्मृताः ॥४६ प्रियङगुशामका वर्णैः शेषा वृक्षनिवासिनः । तेषां सपिभोगाश्च कल्पवृक्षोद्भवाः३ सदा ॥४७ चतुर्थकालाहाराश्च रोगशोकविजिताः । भवनत्रितये चैते जायन्तेऽत्र मृता अपि ॥ ४८ जम्बूद्वीपजगत्यैव समुद्र जगती समा । अभ्यन्तरे शिलापट्ट वनं बाह्ये तु वणितम् ।। ४९ लवणादिकविष्कम्भश्चतुस्त्रिद्विकताडितः। विलक्षोनः क्रमेण स्युः बाहयमध्यादिसूचयः ।। ५०
लंबकर्ण और शशकर्ण होते हैं ॥ १४ ।। दाप्लीकर्ण और एकोल्क आदि कुमानुषोंके अन्तरालोमें स्थित वे कुमानुष क्रमसे सिंहमुख, अश्वमुख, श्वानमुख, परिपु (सिंहमुख), वराहमुख, शार्दूलमुख, घुकमुख और वानरमुख होते हैं ।। १५ । हिमवान् पर्वतकी प्रणिधिमें पूर्व-पश्चिम भागोंमें मत्स्यमुख और कालमुख, दक्षिण विजयार्धकी प्रणिधिमें मेषमुख और गोमुख नामक, शिखरी पर्वतकी प्रणिधिमें पूर्व-पश्चिमकी ओर मेघमुख और विद्युन्मुख तथा उत्तर विजयार्धकी प्रणिधिमें आदर्शनमुख और हस्तिमुख कुमानुष रहते हैं ॥ १६-१७ ॥
इन द्वीपोंमें जो कुमानुप रहते हैं वे युगल रूपसे उत्पन्न होकर उनचास (४९) दिनमें नवीन यौवनसे सम्पन्न हो जाते हैं। इनके शरीरकी ऊंचाई दो हजार (२०००) धनुष प्रमाण होती है ।। ४५ ।। उनमें एक ऊरुवाले कुमानुष शक्करके समान रससे संयुक्त भूमि (मिट्टी) का भोजन करते और गुफाओंमें रहते हैं । उन सबकी आयु एक पल्य प्रमाण होती है ॥ ४६ ।। प्रियंगु पुष्पके समान वर्णवाले शेष कुमानुष वृक्षोंके मूल भागमें रहते हैं। उनके सब उपभोग सदा कल्पवृक्षोंसे उत्पन्न होते हैं ।। ४७ ।। चतुर्थ कालसे अर्थात् एक दिनके अन्तरसे भोजन करनेवाले तथा रोग-शोकसे रहित ये कुमानुष यहां मृत्युको प्राप्त होकर भवनत्रिक देवों में उत्पन्न होते हैं।॥४८॥
समुद्रकी जगती जंबूद्वीपकी जगतीके ही समान है। उसके अभ्यन्तर भागमें शिलापट्ट और बाह्य भागमें वन बतलाया गया है ॥ ४९।।
लवणोद आदि विवक्षित द्वीप या समुद्रके विस्तारको चार, तीन और दोसे गुणित करके प्राप्त राशिमेंसे तीन लाख कम कर देनेपर क्रमसे उसकी बाह्य, मध्य और आदि सूचीका प्रमाण होता है ॥ ५७ ।।
१. पणिदीये । २ प योजनसं' । ३ ५'द्भवः ।
छो.८
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