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________________ ८) संपादकीय वक्तव्य मुझे बनारस ही छोड़ना पड़ा । लगभग ५-६ मासमें जब स्वास्थ्यलाभ हुआ तब सोलापुर आ जानेपर उसके प्रस्तावनादि विषयक शेष कार्यको पूरा कर सका। ___ इसके पश्चात् मुद्रणके कार्यमें अधिक विलंब हो गया है। उसे लगभग ४ वर्ष पूर्व मुद्रणके लिये प्रेसमें दे दिया था। परन्तु प्रेसकी कुछ अनिवार्य कठिनाइयोंके कारण उसका मुद्रण कार्य शीघ्र नहीं हो सका। अस्तु । इन सब कठिनाइयोंसे निकलकर आज उसे पाठकोंके हाथ में देते हुए अत्यधिक प्रसन्नता हो रही है। ऐसे अप्रकाशित ग्रन्थोंके प्रथमतः प्रकाशित करने में संशोधनादि विषयक जो कठिनाइयां उपस्थित होती हैं उनका अनुभव भुक्तभोगी ही कर सकते हैं । ऐसी परिस्थितिमें यद्यपि प्रस्तुत संस्करणको उपयोगी बनानेका यथासम्भव पूरा प्रयत्न किया गया है। फिर भी इसमें जो त्रुटियां रही हों उन्हें क्षन्तव्य मानता हूं। मुझे इस बातका हादिक दुख है कि जिनका इस कार्य में मुझे अत्यधिक सहयोग मिला है वे स्व. प्रेमीजी हमारे बीचमें नहीं है व इस संस्करणको नहीं देख सके । फिर भी स्वर्ग में उनकी आत्मा इससे अवश्य सन्तुष्ट होगी, ऐसा मानता हूं। अन्तमें मैं सुहृद्वर पं. नेमिचन्द्रजी ज्योतिषाचार्यको नहीं भूल सकता हूं कि जिन्होंने प्रस्तुत ग्रन्थके स्वयं संपादनविषयक विचारको छोड़कर जैन सिद्धान्त-भवन आराकी प्रतिको भेजते हुए मुझे इस कार्य में सहायता पहुंचायी है । आदरणीय डॉ. उपाध्येजी और डॉ. हीरालालजीका तो मैं विशेष आभारी हूं, जिनकी इस कार्य में अत्यधिक प्रेरणा रही है तथा जिन्होंने प्रस्तावनाको पढकर उसके सम्बन्धमें अनेक उपयोगी सुझाव भी दिये हैं। श्री. डॉ. उपाध्ये जीने तो ग्रन्थकी उस प्रतिलिपिको भी मुझे दे दिया जिसे उन्होंने स्वयं कराया था। साथ ही उन्होंने ग्रन्थके अन्तिम फूफांको भी देखनेको कृपा की है। श्री.पं.जिनदासजी शास्त्री न्यायतीर्थने ग्रन्थकी श्लोकानुक्रमणिकाको तैयार कर हमें अनुगृहीत किया है। जिस जीवराज जैन ग्रन्थमालाकी प्रबन्ध समितिने इस ग्रन्थके प्रकाशनकी अनुमति देकर मुझे प्रोत्साहित किया है उसका भी मैं अतिशय कृतज्ञ हूं । इत्यलम् । श्रत-पंचमी वी. नि. सं. २४८८ । बालचन्द्र शास्त्री Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001872
Book TitleLokvibhag
Original Sutra AuthorSinhsuri
AuthorBalchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year2001
Total Pages312
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Geography
File Size22 MB
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