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नयज्ञान की मोक्षमार्ग में उपयोगिता )
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इनमें से पर्यायार्थिक चक्षु को सर्वथा बंद करके जब मात्र खुली हुई द्रव्यार्थिक चक्षु के द्वारा देखा जाता है तब नारकपना, तिर्यंचपना, मनुष्यपना, देवपना और सिद्धपना पर्याय स्वरूप विशेषों में रहने वाले एक जीव सामान्य को देखने वाले और विशेषों को न देखने वाले जीवों को " वह सब जीव द्रव्य है” ऐसा भासित होता है और जब द्रव्यार्थिक चक्षु को सर्वथा बंद करके मात्र खुली हुई पर्यायार्थिक चक्षु के द्वारा देखा जाता है तब जीव द्रव्य में रहने वाले नारकपना, तिर्यंचपना, मनुष्यपना, देवपना और सिद्धपना पर्याय स्वरूप अनेक विशेषों को देखने वाले और सामान्य को न देखने वाले जीवों को वह जीवद्रव्य अन्य- अन्य भासित होता है । क्यों कि द्रव्य उन-उन विशेषों के समय तन्मय होने से उन-उन विशेषों से अनन्य है” ॥ ११४॥
इसप्रकार सामान्य- विशेषात्मक, द्रव्य-पर्यायात्मक, नित्या-नित्यामक एवं भेदाभेदात्मक एक ही वस्तु को उपरोक्त पद्धति द्वारा, एक नय के द्वारा वस्तु को जानते समय, दूसरे नय की चक्षु को सर्वथा बंद करके अर्थात्. नहीं वत् " गौण” करते हुए अन्य नय को "मुख्य" करके वस्तु को समझना चाहिए। इसीप्रकार जिस नय को गौण किया था उस नय को मुख्य करके, जिसको मुख्य किया था उस को गौण करके वस्तु को समझने से समग्र वस्तु का ज्ञान यथार्थ रूप से हो सकेगा अर्थात् समग्र वस्तु समझ में आ सकेगी।
निश्चय व्यवहारनय का प्रयोग
उपर्युक्त द्रव्यार्थिक एवं पर्यायार्थिकनय द्वारा समग्र वस्तु के स्वरूप को समझ लेने पर, वस्तु स्वरूप की जानकारी तो स्पष्ट हो जावेगी, लेकिन मेरा मूल प्रयोजन आत्मा की शांति अर्थात् वीतरागता की प्राप्ति, कैसे होगी? उसकी प्राप्ति के लिए नयों की क्या उपयोगिता है, यह बात स्पष्ट
होनी चाहिए ?
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