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________________ ( सुखी होने का उपाय भाग - ५ इसका समाधान द्रव्यस्वभाव प्रकाशक नयचक्र की गाथा १८२ में निम्नप्रकार दिया है : “णिच्छ्रयववहारणया मूलिमभेया गयाण सव्वाणं । णिच्छयसाहणहेऊं पज्जयदव्वत्थियं मुणह" ।। “सर्वनयों के मूल निश्चय और व्यवहार- ये दो नय हैं । द्रव्यार्थिक व पर्यायार्थिक- ये दोनों निश्चय व्यवहार के हेतु हैं ।” ६६ ) उक्त छन्द का अर्थ इसप्रकार भी किया गया है : 1 “नयों के मूलभूत निश्चय और व्यवहार दो भेद माने गये हैं । उसमें निश्चयनय तो द्रव्याश्रित है और व्यवहारनय पर्यायाश्रित है ऐसा समझना - चाहिए।" उपर्युक्त कथन से यह स्पष्ट ज्ञात होता है कि द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिक दोनों नय निश्चय-व्यवहार के हेतु अर्थात् साधन हैं, साथ ही यह भी स्पष्ट किया गया है कि निश्चय द्रव्याश्रित है और व्यवहार पर्यायाश्रित है । इस संबंध में डॉ. भारिल्ल ने परमभाव प्रकाशक नय चक्र में विस्तार से चर्चा की है। उक्त चर्चा का निष्कर्ष पृष्ठ ३६-३७ में निम्नप्रकार दिया गया है : " बहुत कुछ विचार-विमर्श के बाद यही उचित लगता है कि अध्यात्म-शैली के मूलनय निश्चय-व्यवहार हैं और आगम-शैली के मूलनय द्रव्यार्थिक-पर्यायार्थिक हैं।” आलापपद्धति में लिखा है: “पुनरप्यध्यात्मभाषया नया उच्यन्ते । तावन्मूलनयो द्वो निश्चयो व्यवहारश्य । फिर भी अध्यात्म-भाषा के द्वारा नयों का कथन करते हैं । मूलनय दो हैं :- निश्चय और व्यवहार । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001866
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size13 MB
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