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नयज्ञान की मोक्षमार्ग में उपयोगिता )
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इसप्रकार अज्ञानी को भी ज्ञानी बनने के लिए उपर्युक्त प्रकार के नयज्ञान के प्रयोग द्वारा, अपनी आत्मवस्तु को समझना अत्यन्त आवश्यक है ।
नयज्ञान के प्रयोग की आवश्यकता को और भी स्पष्ट करते हुए कतिपय आगम प्रमाण निम्नप्रकार है :
आलापद्धति में नय का स्वरूप इसप्रकार स्पष्ट किया है :
" प्रमाण के द्वारा गृहीत वस्तु के एक अंश को ग्रहण करने का नाम नय है अथवा श्रुतज्ञान का विकल्प नय है अथवा ज्ञाता का अभिप्राय नय है अथवा नाना स्वभावों से वस्तु को पृथक करके जो एक स्वभाव में वस्तु को स्थापित करता है, वह नय है । "
(डॉ. भारिल्ल कृत द्रव्य स्वभाव प्रकाशक नयचक्र पृष्ठ २३) ज्ञाता के अभिप्राय को स्पष्ट करते हुए धवलाकार निम्नप्रकार कहते
प्रश्न :--
उत्तर :
प्रश्न :
उत्तर :
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प्रमाण से गृहीत वस्तु का, एक देश में वस्तु का निश्चय ही, अभिप्राय है । युक्ति अर्थात् प्रमाण से अर्थ ग्रहण करने अथवा द्रव्य और पर्यायों में से किसी एक को ग्रहण करने का नाम नय है । अथवा प्रमाण से जानी हुई वस्तु के द्रव्य अथवा पर्याय में अर्थात् सामान्य या विशेष में वस्तु के निश्चय को नय कहते हैं। ऐसा अभिप्राय है । "
“नय किसे कहते हैं ?
ज्ञाता के अभिप्राय को नय कहते हैं ।
अभिप्राय इसका क्या अर्थ हैं ?
(डॉ. भारिल्ल कृत द्रव्य स्वभाव प्रकाशक नयचक्र पृष्ठ २७) उपरोक्त समस्त कथन का तात्पर्य यही है कि अज्ञानी को भी ज्ञानी बनने के लिए उपरोक्त नय ज्ञान के आधार से ही समग्र वस्तु को समझना चाहिए । ज्ञानी का ज्ञान तो सहज रूप से नयज्ञानात्मक ही वर्तता रहता
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