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द्रव्य में पर्याय की स्थिति )
उसी समय साथ-साथ मौजूद रहा हूँ । इसप्रकार हमारे अनुभव के आधार से भी यह स्पष्ट समझ में आता है कि मेरा अनादि अनन्त नित्य-स्वरूप अस्तित्व रहते हुए भी, मैं हर समय पलटता भी रहता हूँ । मेरा अस्तित्व तो अनादि अनन्त नित्य-ध्रुव स्वभावी ही है। ध्रुव स्वभाव विद्यमान रहते हुए भी, अनित्य- उत्पाद - व्यय स्वभावी पर्याय हर समय पलटती हुई रहने पर भी “मैं” स्वयं तो विद्यमान रहता ही हूँ ।
अब आगम के आलोक में भी इस विषय को समझकर दृढ़ करेंगे । आत्मा का अस्तित्व उत्पाद-व्यय-धोव्यात्मक हर समय ही है, इस सिद्धांत के समर्थन में निम्न आगम प्रमाण प्रस्तुत
:
है १. तत्वार्थ सूत्र अध्याय ५ सूत्र २९ - सद्द्रव्यलक्षणं ॥ २९ ॥ तत्वार्थ सूत्र अध्याय ५ सूत्र ३० - उत्पाद्व्ययधौव्ययुक्तं सत् ॥ ३० ॥ अर्थ :- द्रव्य का लक्षण सत्ता अर्थात् अस्तित्व है और सत्ता, उत्पाद-व्यय-धौव्यात्मक होती है ॥ २९-३० ॥
२. पञ्चाध्यायी पूर्वार्ध श्लोक ८६
अर्थ
जिसप्रकार उत्पाद, धौव्य और व्यय इन तीनों से युक्त सत् ही द्रव्य का लक्षण है, और वह सत् तीनों से युगपत् युक्त मानने पर ही सिद्ध होता है परन्तु अलग-अलग मानने से सिद्ध नहीं हो
सकता ॥ ८६ ॥
-:
३. समयसार गाथा २ की टीका
वह जीव पदार्थ सदा ही परिणामस्वरूप स्वभाव में रहता हुआ होने से उत्पाद-व्यय-धौव्य की एकता रूप अनुभूति लक्षण युक्त सत्ता सहित
है ।
४. पञ्चास्तिकाय संग्रह गाथा ९० का अर्थ
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