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________________ द्रव्य में पर्याय की स्थिति) (४५ पञ्चास्तिकाय संग्रह की गाथा ४ की टीका टीका- “वे उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यमयी सामान्य विशेष सत्ता में नियत-व्यवस्थित निश्चित, विद्यमान होने से सामान्य विशेष अस्तित्व भी है ऐसा निश्चित करना चाहिए। वे अस्तित्व में नियत होने पर भी अस्तित्व से अन्यमय नहीं हैं, जिसप्रकार बर्तन में रहने वाला घी बर्तन से अन्यमय है उसी प्रकार, क्योंकि वे सदैव अपने से निष्पन्न अर्थात् अपने से सत् होने के कारण अस्तित्व से अनन्यमय है। जिसप्रकार अग्नि उष्णता से अनन्यमय है उसी प्रकार । प्रवचनसार व गाथा १०१ की टीका टीका:- “उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य वास्तव में पर्यायों का अवलंबन करते हैं, अर्थात् उत्पाद-व्यय-धौव्य पर्यायों के आश्रय से हैं और पर्यायें द्रव्य के आश्रय से हैं इसलिए यह सब एकही द्रव्य हैं, द्रव्यांतर नहीं।" समयसार गाथा ३२८-३०९ का अर्थ __ अर्थ :- “जो द्रव्य जिन गुणों से, पर्यायों से उत्पन्न होता है उन गुणों से उसे अनन्यजानों जैसे जगत् में कड़ा इत्यादि पर्यायों से सुवर्ण अनन्य है वैसे ॥ ३०८॥ जीव और अजीव के जो परिणाम सूत्र में बताये हैं, उन परिणामों से उस जीव अथवा अजीव को अनन्य जानों ॥" इसप्रकार उपरोक्त आगम आधारों से भी यह सिद्ध है कि द्रव्य और पर्यायों की ऐसी अभिन्नता है कि उन को अन्य द्रव्यों की भाँति भिन्न नहीं किया जा सकता। प्रश्न : - जीव का अजीव से भिन्न मानना, एक परमाणु से अन्य पुद्गल परमाणु का भिन्न मानना, कोई कठिन कार्य नहीं लगता, क्योंकि उनके प्रदेश अलग-अलग हैं। जिनके प्रदेश ही अलग हैं, उनको भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001866
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size13 MB
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