SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४४ (सुखी होने का उपाय भाग - ५ द्रव्य में पर्याय की स्थिति द्रव्य और पर्याय में अभिन्नता प्रश्न होता है कि द्रव्य और पर्याय दोनों अभिन्न हैं क्योंकि दोनों एक ही सत् हैं। द्रव्य और पर्याय दो अलग-अलग सत् नहीं हैं । तत्वार्थ सूत्र में कहा भी है : “सत् द्रव्यलक्षणं, उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तंसत्" अर्थात् गुण और पर्यायों की अभिन्न सत्ता का स्वामी द्रव्य है और वह द्रव्य ही स्वयं उत्पाद, व्यय एवं ध्रुवता युक्त सत् है और वही द्रव्य का लक्षण है। इससे यह स्पष्टत: सिद्ध होता है कि ये सब मिलकर सम्पूर्ण एक ही पदार्थ है और वह सत् है। ऐसी स्थिति में द्रव्य और पर्याय, एक दूसरे से भिन्न स्वभाव वाले अर्थात् द्रव्य तो नित्य स्वभावी एवं पर्याय अनित्य स्वभावी होने पर भी, एक ही सत् के दोनों अंग हैं, उनको भिन्न करना तो अशक्य ही लगता है। अत: पर्याय की द्रव्य से तो अभिन्नता ही सिद्ध होती है ? दूसरी दृष्टि से देखें तो बिना पर्याय के द्रव्य कहीं देखने में भी नहीं आता और पर्याय भी द्रव्य के बिना कहीं भी प्राप्त नहीं होती, क्योंकि वह द्रव्य स्वयं ही, उत्पाद व्यय रूप परिणमता है। अत: अलग-अलग अस्तित्व होना संभव भी नहीं है। इससे भी द्रव्य और पर्याय की अभिन्नता ही सिद्ध होती है। इस अभिन्नता को सिद्ध करने वाले निम्न आगम वाक्य भी उपलब्ध है : पंचाध्यायी द्रव्य अधिकार का श्लोक ८९ अर्थ- “जैसे वस्तु स्वत: सिद्ध है, उसीप्रकार वह परिणमनशील भी है। इसके लिए यह सत्, नियम से उत्पाद, व्यय और धौव्य स्वरूप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001866
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy