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________________ २५०) (सुखी होने का उपाय भाग - ५ इन ज्ञेयों को जानते हुए भी, उनके प्रति राग अथवा द्वेष नहीं करें, और वीतरागी बना रह सके । वह मार्ग समझने का आत्मार्थी के सामने एकमात्र केन्द्रबिन्दु बना रहता है। आचार्यश्री ने भी सभी शास्त्रों का तात्पर्य एकमात्र वीतरागता को ही कहा है। सिद्ध भगवान बनने का मार्ग वही तो होगा, जो उस जाति का हो अर्थात् हम छदस्थ संसारी जीव अल्पज्ञ तो रहेंगे ही, लेकिन वीतरागी नहीं रहकर रागी द्वेषी हो जाते हैं। इसलिये हमको तो मात्र एक ही मार्ग समझना है कि हम अल्पज्ञ होते हुए रागी-द्वेषी कैसे नहीं होने पावें। इस ही ध्येय के आधार पर अपने प्रयोजनभूत केन्द्रबिन्दु को मुख्य रखते हुए देशना में से भी अपने प्रयोजन की सिद्धी कर लेता है। इसप्रकार आत्मार्थी का तो एक ही ध्येय होता है कि सिद्ध बनने के उपायों को बताने वाले कथनों को तो ग्रहण कर लेना बाकी अन्य कथनों में अपनी बुद्धि को विशेष नहीं उलझने देना। देशनालब्धि का निर्णय । देशनालब्धि का संक्षिप्त सार यही है कि इसमें अपने आत्मा का स्वरूप आगम अथवा ज्ञानी के उपदेश के आधार से एकदम स्पष्ट ज्ञात हो जाता है। विकल्पात्मक भूमिका में, उपयोग समझने के समय परलक्षी होते हुए भी इतना स्पष्ट हो जाता है कि आत्मानुभूति में और देशनालब्धि के विकल्पात्मक निर्णय में मात्र प्रत्यक्ष-परोक्ष का ही अंतर रह जाता है। जो आत्मा का स्वरूप विकल्पात्मक भूमिका के निर्णय में आया था, वही ज्ञान में प्रत्यक्ष ज्ञात हो जाता है अर्थात् दोनों में अंतर नहीं रहता। फलत: वह अपने स्वरूप के ज्ञान में अत्यंत निःशंक हो जाता है। उसका ज्ञान एवं श्रद्धा दोनों सम्यक् हो जाने से, वह निःशंक होकर सम्यग्दृष्टि हो जाता For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001866
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size13 MB
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