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________________ १९२ ) ( सुखी होने का उपाय भाग - ५ बनने के लिये इन राग-द्वेषादि भावों के उत्पादक कारणों का ही अभाव करना होगा । समस्त विवेचन से सिद्ध होता है कि वीतरागता प्रगट करने का उपाय ही एकमात्र मोक्ष का सत्यार्थमार्ग हो सकता है । अत: जैसा पंचास्तिकाय ग्रंथ में बताया है कि सभी शास्त्रों का तात्पर्य तो एकमात्र वीतरागता ही है, सभी कथन उस ही को प्राप्त करने का मार्ग बतलाते हैं। पूर्ण वीतरागता तो निर्विकल्प उपयोग अर्थात् शुद्धोपयोग दशा में ही प्राप्त होती है, वह तो सप्तम गुणस्थान से ऊपर वाले जीवों को ही होती है । लेकिन उसका प्रारम्भ तो चतुर्थ गुणस्थान प्राप्त जीव को ही हो जाता है। वह वीतरागता ही साक्षात् मोक्षमार्ग अर्थात् निश्चय मोक्षमार्ग है। साथ ही चार गुणस्थान से छह गुणस्थान तक के जीवों को निश्चय मोक्षमार्ग रूपी वीतरागता के साथ-साथ सरागता भी वर्तती है, उसको भी जिनवाणी में व्यवहार मोक्षमार्ग कहा है । हमको आगम के अध्ययन अथवा सत्समागम आदि के समय, अपनी बुद्धिरूपी कसौटी को जाग्रत रखकर उन समस्त कथनों में से जो कथन, पूर्ण वीतरागता को मोक्षमार्ग बताते हों, उनको यथार्थ मोक्षमार्ग स्वीकारते हुए, साक्षात् उपादेय मानते हुए, जब तक पूर्ण दशा प्राप्त न हो तब तक, ज्ञान में आती हुई व्यवहार मोक्षमार्ग द्वारा कथित सरागता को भी वीतरागता प्राप्त करने के पूर्व पूर्णता प्राप्त न हो तब तक, गुणस्थान परिपाटी अनुसार हेय बुद्धिपूर्वक उसको भी स्वीकार करना चाहिये । वीतरागी स्वरूप में उपयोग नहीं ठहर सके अर्थात् निर्विकल्प उपयोग नहीं रहने की स्थिति में, उपयोग विषय कषायों में नहीं फंसने पावे और रुचि संसार - देह - भोगों के प्रति आकर्षित नहीं हो, इस के लिये एवं वीतरागता के प्रति अपनी रुचि को प्रोत्साहन मिलता रहे, ऐसे प्रयोजन सिद्ध करने के लिए प्रवर्तना चाहिये । शास्त्रों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001866
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size13 MB
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