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________________ द्रव्यों व तत्त्वों को स्व-पर के रूप में पहिचानें ) (२०९ उत्तर :- उपरोक्त निर्णय के पश्चात् ऐसी जिज्ञासा उत्पन्न होना ही आत्मार्थी का यथार्थ चिन्ह है । अत: आत्मार्थी ऐसा विचार करता हैकि पर्याय में परत्व बुद्धि प्रगट हुए बिना तो पूरा द्रव्य शुद्ध हो नहीं सकेगा और द्रव्य तो गुण-पर्यायों का समुदाय है। अत: उन पर्यायों की शुद्धि होना तो अतिआवश्यक है, उसके अभाव में मेरे को यथार्थ आत्मशांति प्राप्त नहीं हो सकती ? ऐसा विवेक जाग्रत हो जाता है और ऐसी जिज्ञासा उत्पन्न हो जाती है पर्याय शुद्धि कैसे हो और आत्मार्थी पर्याय शुद्धि करने का मार्ग खोजने के लिए कटिबद्ध हो जाता है। लेकिन उपरोक्त मान्यता अर्थात् विकारी पर्याय को भी पर मान लेने से, उस के प्रति उपेक्षा बुद्धि उत्पन्न होकर, इस सिद्धान्त के प्रति तो निःशंक श्रद्धा बनी ही रहती है। तत्त्वों का स्वरूप पहिचानना आवश्यक क्यों ? उपरोक्त जिज्ञासा की पूर्ति हेतु पं. टोडरमलजी ने उक्त वाक्य के दूसरे चरण में उक्त उपाय भी निम्न शब्दों में बता दिया है कि "त्यागने योग्य मिथ्यात्व-रागादिक और ग्रहण करने योग्य सम्यग्दर्शनादिक का स्वरूप पहिचानना, पहले चरण में तो मात्र स्व-पर के रूप में पहिचानने के लिये निर्देश था और इस दूसरे चरण में स्वरूप पहिचानने के लिये निर्देश है। अर्थात् अपनी ही पर्याय में होने वाले भावों को, जिनको नवतत्वों में पुण्य-पाप, तथा आस्रव-बंध, संवर-निर्जरा एवं मोक्ष के नाम से कहा है, वे सभी सातों तत्त्व, जीवद्रव्य की पर्याय में ही उत्पन्न होते हैं, लेकिन उनको जीव तत्त्व से भिन्न बताये हैं उनमें से जीव तत्त्व का स्वरूप तो उपरोक्त विवेचन से समझ लिया गया। अजीवतत्त्व तो प्रत्यक्ष रूप से मेरे से भिन्न दिख ही रहे हैं - अनुभव में भी आ रहे हैं अत: उनमें तो कुछ समझने जैसा रहता ही नहीं है । उनको तो जैसे वे मेरे से भिन्न हैं- वैसा ही मान लेना मात्र ही है। बाकी रहे इन तत्त्वों में ही कुछ त्यागने योग्य तथा कुछ ग्रहण करने योग्य बताये हैं एवं उनमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001866
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size13 MB
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