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________________ नयज्ञान की मोक्षमार्ग में उपयोगिता) (१२३ कराने के लिये उन कथनों संबंधी विकल्पों को उपेक्षित एवं गौण करके, अपने उपयोग को आत्म सन्मुख करके अनुभव प्राप्त कराता है। यही उपर्युक्त कथन समझने की उपयोगिता है। अनेकान्त व स्याद्वाद की मोक्षमार्ग में उपयोगिता अनेकान्त और स्याद्वाद अनेकान्त शब्द का अर्थ होता है-अनेक हैं अन्त जिसके । मोक्षमार्ग में प्रयोजनभूत तो मात्र एक मेरा आत्मा ही है। अत: मेरी आत्मोपलब्धि के लिये मुझे अनेकान्त की क्या उपयोगिता है, यह समझना है। मेरी आत्मा स्वयं वस्तु है। वस्तु उस ही का नाम है, जिसमें अनन्त शक्तियाँ बसती हों। अत: आत्मा में भी अनंतगुण-शक्तियाँ-धर्म बसे हुए हैं। इसलिये आचार्य श्री ने “गुणपर्ययवद् द्रव्यं" सूत्र के द्वारा वस्तु का स्वरूप बतलाया है। इन सबसे सिद्ध होता है कि आत्मद्रव्य स्वयं ही अनेकान्तात्मक है। उसी आधार पर जिनवाणी में बताया गया है कि हर एक वस्तु स्वयं अनेकान्तात्मक ही है। अत: अनेकान्त तो वस्तु का स्वरूप है, इस संबंध में परमभाव प्रकाशक नयचक्र के निम्न स्पष्टीकरण पठनीय “वस्तु का स्वरूप अनेकान्तात्मक है। प्रत्येक वस्तु अनेक गुण-धर्मों से युक्त है । अनन्त धर्मात्मक वस्तु ही अनेकान्त हैं और वस्तु के अनेकान्त स्वरूप को समझाने वाली सापेक्ष कथन पद्धति को स्याद्वाद कहते हैं। अनेकान्त और स्याद्वाद में द्योत्य- द्योतक संबंध है।" समयसार की आत्मख्याति टीका परिशिष्ट में आचार्य अमृतचन्द्र इस संबंध में लिखते हैं : "स्याद्वाद समस्त वस्तुओं के स्वरूप को सिद्ध करने वाला अर्हन्त सर्वज्ञ का अस्खलित (निधि) शासन है। वह (स्याद्वाद) कहता है कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001866
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2007
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size13 MB
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