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( सुखी होने का उपाय भाग - ४
आकुलता उत्पन्न क्यों होती है और उन आकुलताओं को मिटाने का जो उपाय करते हैं वह अयथार्थ क्यों है तथा आकुलता मिटाने का सच्चा उपाय क्या है ? इस विषय का विवेचन सुखी होने का उपाय भाग-१ के विषय प्रवेश में विस्तार से किया गया है । पाठकगण इस सन्दर्भ में उसका अध्ययन अवश्य करें ।
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वास्तविक स्थिति यह है कि संसारी प्राणी आकुलता को दुःख तो मानता है, लेकिन उस आकुलता को मिटाने का उपाय यथार्थ नहीं जानता । ऐसा मानता है कि इच्छारूपी आकुलता को मिटाने का उपाय, इच्छाओं की पूर्ति के लिए पाँचों इन्द्रियों के विषयों की पूर्ति करना है, उनके भोगने से आकुलता मिटेगी, इस मान्यता के कारण ही वह विषयों के साधन जुटाने में लगा रहता है। उनको जल्दी-जल्दी एवं अधिक से अधिक भोगने के लिए तीव्र आकुलता उत्पन्न करता है, लेकिन उसके माने हुए उपायों से आकुलता मिटना तो दूर घटती भी नहीं है बल्कि उलटी बढती ही जाती है। इसप्रकार इस ही में संलग्न रहते हुए अपना जीवन खो देता है ।
आकुलता मिटाने का यथार्थ उपाय तो उसकी उत्पत्ति के कारणों का अभाव कर देना है, ताकि वह उत्पन्न ही न होवे, तभी आत्मा को वास्तविक शान्ति प्राप्त हो सकती है। अतः इस विषय पर गम्भीरतापूर्वक विचारकर निर्णय करना चाहिए।
वास्तविक स्थिति तो यह है कि आत्मा तो ज्ञानस्वभावी है और ज्ञान का स्वभाव स्व-पर को जानना है । स्व को तो तन्मयतापूर्वक एवं पर को तटस्थ रहते हुए कोई प्रकार का सम्बन्ध जोड़े बिना, अपनी योग्यता से अपने में ही रहकर मात्र जानते रहने का है। उस ज्ञान में ज्ञात होने वाले ज्ञेय पदार्थ, स्वयं स्वतंत्र द्रव्य होने से, वे अपने स्वभाव सामर्थ्य से, * किसी के भी हस्तक्षेप अथवा सहायता बिना, अपने कालक्रमानुसार निरन्तर परिणमन करते रहते हैं । जो कोई भी उनको अथवा उनके परिणमनों को जाने तो उनमें प्रमेयत्वगुण होने से बिना कोई भेदभाव के उसके ज्ञान में
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