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________________ यथार्थ निर्णयपूर्वक ज्ञातृतत्त्व से ज्ञेयतत्त्व का विभागीकरण ) ( २१ सुखी होने का उपाय भाग-४ ( यथार्थ निर्णयपूर्वक ज्ञातृतत्त्व से ज्ञेयतत्त्व का विभागीकरण) देशनालब्धि सम्यक्त्वसन्मुख जीव की पात्रता आचार्य पद्मनन्दि ने सम्यक्त्वसन्मुख जीव की पात्रता का सूचक निम्न श्लोक कहा है ――― तत्प्रति प्रीतिचित्तेन येन वार्ताऽपि हि श्रुतः । निश्चितं स भवेद्धव्यो भावि निर्वाणभाजनं ॥ जो प्रीतिचित्तपूर्वक आत्मा की वार्ता को सुनता है वह निश्चितरूप से भव्य है व भावी निर्वाण का पात्र है (अर्थात् निकट भव्य है) । प्रीतिचित्तपूर्वक आत्मा की बात सुनने वाला कैसा होगा? उसका चित्र पण्डित टोडरमलजी ने मोक्षमार्ग प्रकाशक ग्रन्थ के सातवें अधिकार पृष्ठ २५७ पर निम्नप्रकार बतलाया है। Cider | “ वहाँ अपने प्रयोजनभूत मोक्षमार्ग के देव-गुरु-धर्मादिक के, जीवादितत्त्वों के तथा निज-पर के और अपने अहितकारी - हितकारी भावों के - इत्यादि उपदेश से सावधान होकर ऐसा विचार किया कि अहो ! मुझे तो इन बातों की खबर ही नहीं, मैं भ्रम से भूलकर प्राप्त पर्याय ही में तन्मय हुआ; परन्तु इस पर्याय की तो थोड़े ही काल की स्थिति है तथा यहाँ मुझे सर्व निमित्त मिले हैं, इसलिए मुझे इन बातों को बराबर समझना चाहिए क्योंकि इनमें तो मेरा ही प्रयोजन भासित होता है - ऐसा विचार कर जो उपदेश सुना, उसके निर्धार करने का उद्यम किया ।” Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001865
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1999
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size11 MB
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