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________________ ( सुखी होने का उपाय भाग - ४ प्रश्न इस स्थिति में यह ज्ञान पर्याय अमुक ज्ञेय को ही ज्ञान का विषय बनाती है, अन्य को नहीं बनाती, इसका क्या कारण ? १०८ ) - उत्तर स्पष्ट है कि यह उस ज्ञान पर्याय का ही पूरा-पूरा कार्य है कि वह किसको जाने और किसको न जाने । निष्कर्ष है कि तत्समय' की ज्ञान पर्याय की योग्यतानुसार ही पदार्थ उस ज्ञान के ज्ञेय बनते हैं, अन्य नहीं बन पाते । केवली भगवान की पर्याय की योग्यता इतनी विकसित होगई कि लोकालोक के समस्त पदार्थों को जान लेती है । इसीप्रकार हम छद्मस्थों के भी जानने की योग्यता में अन्तर होने से, जानने की क्षमता में भी प्रत्यक्ष अन्तर ज्ञात होता है । पाँचों इन्द्रियों के सामने अनेक ज्ञेय उपस्थित होते हुए भी हमको ज्ञात नहीं होते और जो उपस्थित नहीं होते वे ज्ञान में ज्ञात हो जाते हैं । जैसे भोजन करते समय अगर हमारा उपयोग अन्य तरफ चला जाता है तो भोजन में क्या खाया क्या स्वाद था यह भी पता नहीं रहता और जहाँ उपयोग चला गया वह ज्ञात होने लगता है । इसीप्रकार रात को सोते समय जो भी स्वप्न में जानने में आया वो पदार्थ कहाँ है ? रस्सी सामने पड़ी हो फिर भी ज्ञान में सर्प दिखने लगता है इत्यादि । इससे सिद्ध है कि ज्ञान पर्याय की योग्यता जैसी होती है ज्ञानक्रिया में वे ही ज्ञेयाकार बनते हैं । इसप्रकार ज्ञान ज्ञेय का स्वतंत्र परिणमन ही निरन्तर प्रकाशमान है । प्रवचनसार गाथा २६ की टीका में भी कहा है कि "वहाँ (ऐसा समझना कि ) निश्चयनय से अनाकुलता लक्षणसुख का जो संवेदन उस सुख संवेदन के अधिष्ठानता जितना ही आत्मा है और उस आत्मा के बराबर ही ज्ञान स्वतत्त्व है । उस निज-स्वरूप आत्मप्रमाण ज्ञान को छोड़े बिना, समस्त ज्ञेयाकारों के निकट गये बिना, भगवान सर्वपदार्थों को जानते हैं । निश्चयनय से ऐसा होने पर भी व्यवहारनय से यह कहा जाता है कि भगवान सर्वगत हैं और निमित्तभूत ज्ञेयाकारों को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001865
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1999
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size11 MB
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