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________________ अनुभूति में इन्द्रियज्ञान बाधक कैसे ? ) ज्ञाताबुद्धि एवं कर्ताबुद्धि का अंतर सामान्यतया दोनों का अंतर सब को ज्ञात है। जैसे किसी प्राणी की हत्या कर देने वाला उस हत्या का कर्ता है, उसके दण्ड का पात्र भी वही है। इसी समय दूर से ही उस हत्याकांड को देखने वाला व्यक्ति मात्र ज्ञाता होने से साक्षी है । वह दण्ड का पात्र नहीं होता एवं उसके कथन को प्रामाणिक मानकर उसे पुरस्कृत किया जाता है 1 फलत: करने वाला कर्ता है एवं जानने वाला मात्र ज्ञाता ही है । कर्ता है वह बंधता है, ज्ञाता बंधन को प्राप्त नहीं होता । संक्षेप में कर्ता एवं ज्ञाता का यहीं अंतर है । ( ९१ पण्डित बनारसीदास जी ने नाटक समयसार कर्ता कर्म अधिकार में कहा भी है करै करम सो ही करतारा, जो जानै सो जाननहारा । जानै सो करता नहिं होई, करता सो जाने नहिं कोई ॥ २३ ॥ ज्ञाता की परिभाषा तो सर्वत्र एक ही है कि जो तटस्थ रहकर मात्र जाने वह ज्ञाता है । जगत के सभी द्रव्यों के सभी परिणमनों को कैसे भी हों, उन सबके प्रति तटस्थ रहकर साक्षी रहता हुआ जानता रहे वह ज्ञाता है । आत्मा का ऐसा ही स्वभाव है । जो भी ज्ञात होते हैं वे सब ज्ञेय हैं । अत: मैं तो मात्र ज्ञाता ही. हूँ किसी परिणमन का कर्ता नहीं हूँ; ऐसी श्रद्धा जागृत होना ज्ञाताबुद्धि है ही और उसी को उपेक्षाबुद्धि कहते हैं । वह ही निर्धार वर्तता है। अज्ञानी को कर्ताबुद्धि ही रहती है इसीकारण आकुलित रहता हुआ अत्यन्त दुःखी बना रहता है । कर्त्तापने की परिभाषाऐं व विपरीतता जिनवाणी में कर्तापने की दो परिभाषाऐं उपलब्ध हैं, अतः दोनों अपेक्षाओं को समझकर, जो परिभाषा जहाँ योग्य हो यथास्थान लगाकर, प्रयोजन की सिद्धि करनी चाहिये । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001864
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year2000
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size8 MB
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