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( सुखी होने का उपाय भाग-३ अभिनन्दन पत्र भी न लेने की प्रतिज्ञावद्ध श्री पाटनी जी ने यह कृति लेखक बनने की भावना से नहीं लिखी है; अपितु अपने उपयोग की शुद्धि के लिए ही उनका यह प्रयास है; उनके इस प्रयास से समाज को सहज ही सम्यक् दिशाबोधक यह कृति प्राप्त हो गई है।
यह कृति चार भागों में प्रकाशित हो चुकी है। तीसरे भाग का यह द्वितीय संस्करण पुन: प्रकाशित किया जा रहा है। उनके भाव आप सब तक उनकी ही भाषा में हूबहू पहुँचें- इस भावना से उसमें कुछ भी करना उचित नही समझा गया। अत: विद्वज्जन भाषा पर न जावें, अपितु उनके गहरे अनुभव का पूरा-पूरा लाभ उठावें-ऐसा मेरा विनम्र अनुरोध
अपने अनुभवों को लिपिबद्ध करने का अनुरोध मैं उनसे समय-समय पर करता रहा हूँ, तथापि उन्होंने कभी इस ओर ध्यान नहीं दिया; वे तो आचार्यों के मूल ग्रन्थों, स्वामी जी के प्रवचनों और उनके आधार पर तैयार की गई विद्वानों की कृतियों के प्रकाशन और प्रचार-प्रसार में ही लगे रहे; अब जब शरीर शिथिल हो रहा है और दौड़-धूप सहज ही कम होती जा रही है, तब अपने उपयोग की शुद्धि के लिए उनका ध्यान इस
ओर गया है। हम उनके स्वस्थ एवं मंगल जीवन की कामना करते हैं, कि जिससे उनकी सेवाओं और कृतियों का अधिकाधिक लाभ मुमुक्षु समाज को प्राप्त हो सके।
- डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल
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