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________________ 73) (सुखी होने का उपाय तत्त्व में आ ही जाते हैं, लेकिन इस आत्मा के अतिरिक्त जितने भी अन्य जीव द्रव्य हैं वे भी सब जीव द्रव्य होते हुये भी इस आत्मा की अपेक्षा अजीव तत्त्व में ही गर्भित हो जाते हैं, अर्थात् उनके संबंध में भी जैसा अन्य अजीव द्रव्यों में परपना माना हुआ है, वैसा ही इन सबमें भी अपने से पर होने से वे सब जीव भी पर ही हैं। अतः उन सबका भी समावेश एक मात्र अजीव तत्त्व में ही आ जाता है, इसप्रकार अजीव तत्त्व की यथार्थ जानकारी प्राप्त कर, उनमें परपने की श्रद्धो जाग्रत कर, जो अभी तक उनमें अपनेपने की मान्यता करता चला आ रहा है, वह छोड़कर उन सब के कार्यों में हस्तक्षेप करनेवाला मानने से दुखी हो रहा था, उसका अन्त आ जाना चाहिये, उन सबसे कर्तव्य के भार से निर्भार हो जाना चाहिये। इसप्रकार मात्र जीव, अजीव तत्त्व का ही यथार्थ, ज्ञान-श्रद्धान होने पर ही आत्मा को एकदम हल्का होकर निर्भार हो जाने से श्रद्धाजन्य अत्यन्त शांति प्राप्त हो जाती है। अभी तक पर का कुछ सुधारने बिगाड़ने का अभिप्राय रहने से निरंतर चिन्ताग्रस्त रहता था तथा पर द्रव्य मेरा कुछ बिगाड सुधार कर देंगे ऐसी मिथ्या मान्यता के कारण निरंतर भयाक्रांत होकर आकलित रहता था, उन सब का अभाव होकर शांति प्राप्त हो जाती है। उपरोक्त कहे गये आसव, बंध, संवर, निर्जरा, मोक्ष ये पांचों ही तत्त्व इस जीव की स्वयं की ही पर्यायें हैं। अतः इन पर्यायों को हेय, उपादेय के ज्ञानपूर्वक समझना चाहिये तथा हेय का अभाव कर, उपादेय पर्याय को "प्राप्त करने का उग्र पुरूषार्थ जाग्रत करना चाहिये। फलस्वरूप संपूर्ण विकारों का अभाव होने पर पर्याय भी स्वयं द्रव्य जैसी ही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001863
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size6 MB
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