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सुखी होने का उपाय)
सात तत्त्वों के श्रद्धान द्वारा भेदज्ञान
उपरोक्त सात तत्त्व जीव, अजीव, आम्रव, बंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष हैं। उनमें आम्रव और बंध तत्त्व के विशेष भेद पुण्य और पाप को मिलाने से वे ही नव तत्त्व एवं नव पदार्थ हो जाते है। अव्यक्त आत्मा का दर्शन करने के लिये अर्थात् आत्मोपलब्धि के लिये हमको भेदज्ञान के साधक ऐसे इन सात तत्त्व अथवा नव तत्त्वों को विस्तारपूर्वक भली प्रकार समझना चाहिये । पुण्य, पाप दोनों आस्रव तत्त्व के ही भेद हैं। अतः अभी हम उन दोनों का आस्रव में ही समावेश मानकर सात तत्त्वों के माध्यम से ही चर्चा करेंगे।
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सर्वप्रथम हम इन सातों के निम्नप्रकार विभागीकरण पूर्वक आत्मा को समझने का प्रयास करेंगे।
१. द्रव्य और पर्याय के भेद से,
२. हेय, ज्ञेय और उपादेय के भेद से,
३. स्वज्ञेय - परज्ञेय के भेद से
४. सात तत्त्वों की आत्मोपलब्धि में उपयोगिता ।
इसप्रकार इस विषय को विस्तार पूर्वक समझने का प्रयास करेंगे।
इन सातों तत्त्वों को अनेक भेदपूर्वक समझने के पूर्व यह दृष्टिकोण स्पष्ट रहना चाहिये कि ये सातों तत्त्व आत्मा के ही हैं। अतः इनको आत्मा में ही देखना चाहिये। कहा भी है "तस्य भावस्तत्वं" "तद्भाव सो तत्त्व" आदि-आदि अर्थात् आत्मा के तत्त्वों को आत्मा में ही देखना चाहिये।
यहाँ प्रश्न होता है कि जिनवाणी में ऐसा भी तो कथन है कि द्रव्यकर्मों का आत्मा में आना सो आम्रव, आत्मा के
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