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________________ 69) (सुखी होने का उपाय एकमात्र कर्तव्य है। ऐसा समझकर यह श्रद्धा जाग्रत हो कि मेरा भी त्रिकाली भाव वर्तमान में ही सिद्ध जैसा ही है। ऐसी श्रद्धा उत्पन्न होते ही आत्मदर्शन हो जाने के कारण पर्याय में रहनेवाले विकारी निर्विकारी भावों का ज्ञान यथार्थ हो जाता है। इसीको सम्यग्ज्ञान कहते है साथ ही विकारी भावों का अभाव करके निर्विकारी भावों को उत्पन्न करने का प्रयास प्रारंभ को जाता है, इसही का नाम सम्यक्चारित्र है। सारांश यह है कि श्रद्धा यथार्थ-सच्ची हो जाने के बाद वही ज्ञान सम्कज्ञान हो जाता है तथा उस ही मार्ग पर चलने का पुरुषार्थ ही सम्यक्चारित्र है। अतः इन तीनों की एकता को ही जिनवाणी में मोक्षमार्ग कहा गया है। तत्वार्थ सूत्र में कहा भी है "सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्राणि मोक्षमार्गः" इस ग्रंथ का प्रारंभ ही इसी सूत्र से किया गया है, तथा मोक्षमार्ग का प्रारंभ भी सम्यग्दर्शन से ही होता है। इसके बाद दूसरा सूत्र है "तत्वार्थ श्रद्धानं सम्यकदर्शन"। उसके बाद ही सूत्र आता है "जीवाजीवा म्र व बन्धसंवर निर्जरा मोक्षास्तत्वम्। इन सबसे निष्कर्ष निकलता है कि समयग्दर्शन प्राप्त करने के लिये, अपने त्रिकाली भाव में अहंपना स्थापन करना चाहिए। सात तत्वों के स्वरूप को यथार्थ समझे बिना अर्थात अपने द्रव्य और पर्यायों की यथार्थ स्थिति समझे बिना, हम अपने अंदर मोक्षमार्ग का प्रारंभ नहीं कर सकेंगे। अतः हमको सातों तत्वों के स्वरूप को यथार्थ समझना ही चाहिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001863
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size6 MB
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