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(सुखी होने का उपाय इस आत्मा का कर्तव्य कोई है तो मात्र यही रह जाता है कि अपनी ही पर्याय की परसन्मुखता समाप्त कर स्वसन्मुखता करने का उपाय खोजना है। उस ही का नाम मोक्षमार्ग है, उस ही का नाम शांति प्राप्त करने का संक्षेप से संक्षेप एवं सरल से सरल उपाय है। ऊपर कहे अनुसार, सच्चे आत्मज्ञानी पुरुष के द्वारा अथवा जिनवाणी के विचार, चिन्तन, मनन, चर्चा, वार्ता आदि के माध्यम से जो मार्ग समझा हो उसकी यथार्थता की परीक्षा करने की कसौटी भी यही है कि वह मार्ग जो हमने समझा है, वह पर्याय की परसन्मुखता का अभाव कर स्वसन्मुखता उत्पन्न कराता है या नहीं? अगर वह मार्ग उपर्युक्त दशा प्राप्त कराने का उपाय है, तो वह ही मार्ग यथार्थ है, उपादेय है और निःशंक होकर पूर्ण पुरुषार्थ के द्वारा ग्रहण करने योग्य है और अगर उस मार्ग के द्वारा परसन्मुखता का अभाव नहीं हो पाता है तो समझना चाहिए, कि जो मार्ग हमने समझा है वह यथार्थ नहीं है, अतः उसमें पुनः खोज करके यथार्थ मार्ग प्राप्त करने का पुनः प्रयास करना चाहिए। और जो मार्ग उपर्युक्त कसौटी पर सही साबित हो, वही सच्चा मार्ग जानकर उस ही को श्रद्धा में पक्का करके पूर्ण पुरुषार्थ के द्वारा निःशंक होकर साधन करना चाहिए। यही एक मार्ग अपनी पर्याय को निज आत्मा के साथ सम्मिलन प्राप्त करके अत्यन्त तृप्त होकर आनन्दित हो जाने का है। भगवान् अरहंत भी इस ही मार्ग के द्वारा अपनी पर्याय को आत्मसन्मुख कर आत्मा के साथ ऐसे एकमेक हो गये कि पर्याय बाहर निकलने को उत्सुक ही नहीं होती। फलतः अनंत काल तक उस ही आनन्द का अनवरत उपभोग करते रहते हैं। यथार्थ मार्ग तथा यथार्थ पुरुषार्थ की पहचान ही यही है कि उसके फल में
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