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________________ 27) (सुखी होने का उपाय प्रश्न का समाधान है कि जिसके अन्तर में यह विचार आया कि मैं भ्रम से भूलकर प्राप्त पर्याय ही में तन्मय हुआ, परन्तु इस पर्याय की तो थोड़े ही काल की स्थिति है।" ऐसे विचारवाले जीव की निर्णय करने में उग्र तत्परता है, वह जीव अपने जीवन का एक क्षण भी व्यर्थ खोना नहीं चाहता। ऐसा जीव ही निर्णय करके प्रायोग्य एवं करण लब्धि पार करता हुआ निश्चित रूप से सम्यक्त्व प्राप्त कर लेगा । पद्मनंदिपंचविशतिका में कहा भी है n तत्प्रति प्रीतिचित्तेन येन वार्ताऽपि हि निश्चितं स भवेद् भव्यो भावि निर्वाणभाजनं ॥ श्रुता । : अर्थ जिस ने आत्मा की वार्ता भी प्रीतिचित्त पूर्वक सुनी है, वह निश्चितरूप से भव्य है एवं भाविनिर्वाण का पात्र है। परमात्मप्रकाश ग्रन्थ की गाथा ८- ९-१० में भी शिष्य प्रभाकर भट्ट ने आचार्य श्री योगीन्द्र देव से इसी आशय की प्रार्थना की है कि "भगवन् ! मै तो संसारभ्रमण करते-करते त्रस्त हो चुका हूँ, मुझे सब कुछ मिला, लेकिन एकमात्र शुद्धात्मतत्त्व की प्राप्ति नहीं हुई, अतः मुझे मेरे शुद्धात्मतत्त्व की प्राप्ति कैसे हो? वह उपाय बताइये, मुझे अब एक भव भी धारण नहीं करना है, " आदि-आदि। इसप्रकार की भावनावाला जीव जब निर्णय करने के सन्मुख होता है तो उससमय उसकी अन्तर्भूमिका अत्यन्त उग्र होती है, ऐसी भावनावाले जीव की रुचि अब संसार, शरीर, भोगों से हटकर एकमात्र अपना आत्महित अर्थात् मोक्षमार्ग प्राप्त करने के प्रति तीव्रता के साथ अग्रसर होती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001863
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size6 MB
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