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________________ सुखी होने का उपाय) (26 निकलकर सत्यार्थ मार्ग ग्रहण कर ले। इस प्रकार हर एक विषय के अध्ययन के समय उसका मतार्थ जानना अत्यन्त आवश्यक है, कि यह कथन किस प्रकार की मान्यता को मिटाने के लिये किया गया है। अन्यथा उस विषय का यथार्थ अभिप्राय समझ में नहीं आ सकता। आगमार्थ :- उपर्युक्त शब्दार्थ, नयार्थ, मतार्थ समझकर जो भी भाव समझ में आया हो, वह आगम के अनुसार है अथवा नहीं। क्योंकि मात्र युक्ति हेतु आदि के माध्यम से किया गया कोई भी निर्णय जब तक आगमानुसार नहीं हो, यथार्थता को प्राप्त नहीं हो सकता। अतः आत्मार्थ को आवश्यक विषय का आगम का अभ्यास भी होना चाहिए, क्योंकि निर्णय की यथार्थता की पहिचान करानेवाली कसौटी तो वीतरागता एवं सर्वज्ञोपज्ञ होने से आगम ही है। अतः अपने निर्णय के प्रति निःशंकता प्राप्त करने के लिए निर्णय को आगमार्थ के द्वारा परख लेना चाहिए। भावार्थ उक्त चारों कसौटियों से पार होने के बाद में जो निष्कर्ष प्राप्त हुआ हो, वही उस कथन का भावार्थ अर्थात् यथार्थ भाव है, ऐसा निःशंक होकर समझना चाहिए। -: द्वारा, इसप्रकार उपर्युक्त उपर्युक्त बताई गई गई पद्धतियों के आत्मकल्याण के लिए उपदेश के अभिप्राय को समझ कर निर्णय में निःशंकता प्राप्त करनी चाहिए। निर्णय करनेवाले की अन्तर्भूमिका उपर्युक्त कथन से प्रश्न उपस्थित होता है निर्णय करने के सन्मख जीव की अन्तर्भूमिका कैसी होती है इस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001863
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size6 MB
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