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________________ सुखी होने का उपाय) (94 पर ही भगवान बनने का वास्तविक पुरुषार्थ प्रारंभ होता है। ऐसा पुरुषार्थ करने में आनेवाली कठिनाइयों को सरल बनाने के लिये एवं तत्संबंधी बाधाओं को दूर करने के लिये वह उस मार्ग को बतलानेवाले साहित्य का अत्यन्त रुचि एवं आदरभावपूर्वक अध्ययन करेगा। उस मार्ग में आई कठिनाइयों को दूर कर जो स्वयं भगवान बन गये हैं, उनके प्रति अंदर से उत्कृष्ट आदरभाव आये बिना रह ही नहीं सकता। तथा जो उस मार्ग के द्वारा भगवान बनने के मार्ग में लगे हुए हैं और उस मार्ग की बाधाओं को दूर करते हुए हमसे आगे बढ़ चुके हैं। उनके प्रति, अपनी कठिनाइयों को भी दूर कर आगे बढ़ने के लिये अत्यन्त आदरभाव सहित आतुरतापूर्वक समागम करने का प्रयास करे बिना कैसे रह सकेगा ? तात्पर्य यह है कि यह एक सहज स्वाभाविक प्रक्रिया है कि जिस व्यक्ति को जैसा बनना होता है, उसको सहज ही उसमें पारंगत पुरुषों के प्रति आदरभाव, पूज्यभाव आये बिना रह सकता नहीं, उस विषय के साहित्य को अध्ययन करे बिना भी रह सकता नहीं तथा अपने से विशिष्टता का प्राप्त पुरुषों की आदरपूर्वक संगति प्राप्त करे बिना भी रह सकता नहीं। इसीप्रकार आत्मार्थी जीव भी भगवान बनने की तीव्र लगन लगने के कारण भगवान दशा को प्राप्त परमात्माओ के प्रति, उस दशा को प्राप्त कराने की मार्गदर्शक जिनवाणी के प्रति, उसीप्रकार सफलता प्राप्त कर अपने से आगे बढ़ चुके ऐसे साधक पुरुषों के प्रति भूमिकानुसार उत्कृष्ट आदरभाव, विनयभाव, पूज्यभाव आये बिना नहीं रह सकता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001863
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size6 MB
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