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________________ 93) (सुखी होने का उपाय बाते समझ में आज जावेंगी। इसको दृष्टान्त के माध्यम से समझेंगे। जैसे किसी दरिद्री पुरुष को लक्ष्मीवान् बनने के लिये उसके अंतर में सहज स्वाभाविक जो-जो प्रक्रिया होती है, वैसी ही प्रक्रियाएं सम्यक्त्वरहित जीव को सम्यक्त्व प्राप्त करने में होना स्वाभाविक ही हैं। सर्वप्रथम वह दरिद्री पुरुष, लक्ष्मी के अभाव में अपने को होनेवाली कठिनाइयों को अनुभव करता है और लक्ष्मीवान् को देखकर, लक्ष्मी के द्वारा प्राप्त हुई सुख-सुविधाओं के प्रति लालायित होता है। तब अपने अंतर में दृढ़ निश्चयी होता हुआ, लक्ष्मी प्राप्त करने के लिये तीव्रता से प्रेरित होता है। जब वह लक्ष्मी प्राप्त करने के पुरुषार्थ में संलग्न होता है, तब उसको बिना प्रेरणा के स्वाभाविक रूप से ऐसे विचार उत्पन्न होते हैं कि लक्ष्मी प्राप्त करने के लिये मुझे ऐसे व्यक्तियों से सम्पर्क करना चाहिये, जो लक्ष्मीवान् हो चुके हैं। अथवा अभी लक्ष्मी प्राप्त करने के पुरुषार्थ में संलग्न होकर कुछ सफलता भी प्राप्त कर चुके हैं। साथ ही वह ऐसे ही साहित्य का अध्ययन भी करे बिना नहीं रह सकेगा, जिसके द्वारा उसको लक्ष्मी प्राप्त करने के सुगम व सफल मार्ग का ज्ञान हो सके। साथ ही उसको ऐसे सफल व्यक्तियों के प्रति तथा ऐसे साहित्य के प्रति अंदर में सहज ही तीव्र बहुमान तथा आदरभाव रहता ही है तथा व्यवहार में भी प्रगट होता है। इसीप्रकार आत्मार्थी, जो मोक्ष प्राप्त करना चाहता है अर्थात् भगवान बनना चाहता है, वह जीव सर्वप्रथम भगवान् बनने के लिये, भगवान् का स्वरूप समझकर उससे प्रगट होनेवाले लाभ को समझने का प्रयास करेगा। अपनी वर्तमान स्थिति को भी समझेगा। दोनों के मिलान के द्वारा, भगवान बनने की सच्ची वास्तविक रुचि जाग्रत करेगा। ऐसा होने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001863
Book TitleSukhi Hone ka Upay Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Patni
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1998
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & philosophy
File Size6 MB
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